Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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कप्पे |
[५५] क्षत्रियकुमार जमालि के पिता के द्वारा यह आदेश दिये जाने पर वह नापितं अत्यन्त हर्षित एवं तुष्ट हुआ और हाथ जोड़ कर यावत् (इस प्रकार) बोला- 'स्वामिन्! आपकी जैसी आज्ञा है, वैसा ही होगा', इस प्रकार उसने विनयपूर्वक उनके वचनों को स्वीकार किया। फिर सुगन्धित गन्धोदक से हाथ-पैर धोए, आठ पट वाले शुद्ध वस्त्र से मुंह बांधा और अत्यन्त यत्नपूर्वक क्षत्रियकुमार जमालि के निष्क्रमणयोग्य अग्रकेशों को चार अंगुल छोड़ कर काटा।
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
विवेचन— नापित द्वारा जमालि का अग्रकेशकर्तन — प्रस्तुत तीन सूत्रों में जमालि के पिता द्वारा नाई को बुला कर जमालि के निष्क्रमणयोग्य अग्रकेश काटने का आदेश देने पर वह बहुत प्रसन्न हुआ और विनयपूर्वक आदेश शिरोधार्य करके नहा-धोकर शुद्ध वस्त्र मुंह पर बांध कर यत्नपूर्वक उसने जमालि कुमार के अग्रकेश काटे ।
कठिन शब्दों का विशेषार्थ — संदिसंतु— आदेश दीजिए, बताइए । परेणं जत्तेणं - अत्यन्त यत्नपूर्वक । णिक्खमणपाउग्गे अग्गकेसे—दीक्षित होने वाले व्यक्ति के आगे के केश चार अंगुल छोड़ कर काटे जाते थे, ताकि गुरु अपने हाथ से उनका लुञ्चन कर सकें, इसे निष्क्रमणयोग्य केशकर्तन कहा जाता है। कप्पेहि — काटो । अट्ठपडलाए पोत्तीए-आठ पटल ( परत या तह) वाली पोतिका (मुखवस्त्रिका) से ।
५६. तए णं सा जमालिस खत्तियकुमारस्स माया हंसलक्खणेणं पडसाडएणं अग्गकेसे पडिच्छइ, अग्गकेसे पडिच्छित्ता सुरभिणा गंधोदएणं पक्खालेइ, सुरभिणा गंधोदणं पक्खालेत्ता अग्गेहिं वरेहिं गंधेहिं मल्लेहिं अच्चेति, अच्चित्ता सुद्धवत्थेणं बंधेइ, सुद्धवत्थेणं बंधित्ता रयणकरंडगंसि पक्खिवइ, पक्खिवित्ता हार - वारिधार - सिंदुवार - छिन्नमुत्तावलिप्पगासाइं सुयवियोगदूसहाइं अंसूइं विणिम्मुयमाणी विणिम्मुयमाणी एवं वयासी –एस णं अम्हं जमालिस्स खत्तियकुमारस्स बहूसु तिहीसु य पव्वणीसु य उस्सवेसु य जण्णेसु य छणेसु अपच्छिमे दरिसणे भविस्सति इति कट्टु ओसीसगमूले ठवेइ ।
[५६] इसके पश्चात् क्षत्रियकुमार जमालि की माता ने शुक्लवर्ण के या हंस-चिह्न वाले वस्त्र की चादर (शाटक) में उन अग्रकेशों को ग्रहण किया। फिर उन्हें सुगन्धित गन्धोदक से धोया, फिर प्रधान एवं श्रेष्ठ गन्ध (इत्र) एवं माला द्वारा उनका अर्चन किया और शुद्ध वस्त्र में उन्हें बांध कर रत्नकरण्डक (रत्नों के पिटारे) में रखा। इसके बाद जमालिकुमार की माता हार, जलधार, सिन्दुवार के पुष्पों एवं टूटी हुई मोतियों की माला के समान पुत्र के दु:सह (असह्य) वियोग के कारण आंसू बहाती हुई इस प्रकार कहने लगी—'ये (जमालिकुमार
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ - टिप्पण) भा. १, पृ. ४६६
२. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४७६
(ख) भगवती. भा. ४ (पं. घेवरचन्दजी) पृ. ७४७