Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

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Page 566
________________ नवम शतक : उद्देशक-३३ ५३५ बहुशाल नामक उद्यान से निकला, यावत् मस्तक पर कोरंटपुष्प की माला से युक्त छत्र धारण किए हुए महान् सुभटों इत्यादि के समूह से परिवृत्त होकर जहाँ क्षत्रियकुण्डग्राम नामक नगर था, वहाँ आया। वहाँ से वह क्षत्रियकुण्डग्राम के बीचोंबीच होता हुआ, जहाँ अपना घर था और जहाँ बाहर की उपस्थानशाला थी, वहाँ आया। वहाँ पहुँचते ही उसने घोड़ों को रोका और रथ को खड़ा कराया। फिर वह रथ से नीचे उतरा और आन्तरिक (अन्दर की) उपस्थानशाला में, जहाँ कि उसके माता-पिता थे, वहाँ आया। आते ही (माता-पिता के चरणों में नमन करके) उसने जय-विजय शब्दों से वधाया, फिर इस प्रकार कहा हे माता-पिता ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर से धर्म सुना है, वह धर्म मुझे इष्ट, अत्यन्त इष्ट और रुचिकर प्रतीत हुआ है। ३२. तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा-पियरों एवं वयासि : धन्ने सि णं तुमं जाया ! कयत्थेसि णं तुमं जाया, कयपुण्णे सि णं तुम जाया!, कयलक्खणे सि णं तुमं जाया!, जं णं तुमे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं धम्मे निसंते, से वि य ते धम्मे इच्छिए पडिच्छिए अभिरुइए। [३२] यह सुन कर माता-पिता ने क्षत्रियकुमार जमालि से इस प्रकार कहा—हे पुत्र! तू धन्य है ! बेटा! तू कृतार्थ हुआ है। पुत्र ! तू कृतपुण्य (भाग्यशाली) है। पुत्र! तू कृतलक्षण है कि तूने श्रमण भगवान् महावीरस्वामी से धर्म श्रवण किया है और वह धर्म तुझे इष्ट, विशेष प्रकार से अभीष्ट और रुचिकर लगा है। ३३. तए णं से जमाली खत्तियकुमारे अम्मा-पियरो दोच्चं पि एवं वयासी—एवं खलु मए अम्म ! ताओ ! समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतिए धम्मे निसंते जाव अभिरुइए। तए णं अहं अम्म! ताओ! संसारभउव्विग्गे, भीए जम्मण-मरणेणं, तं इच्छामि णं अम्म ! ताओ ! तुब्भेहिं अब्भणुण्णाए समाणे समणस्स भगवओ महावीरस्स अंतियं मुंडे भवित्ता अगाराओ अणंगारियंपव्वइत्तए। [३३] तदनन्तर क्षत्रियकुमार जमालि ने दूसरी बार भी अपने माता-पिता से इस प्रकार कहा हे मातापिता ! मैंने श्रमण भगवान् महावीर से वास्तविक धर्म सुना, जो मुझे इष्ट, अभीष्ट और रुचिकर लगा, इसलिए हे माता-पिता ! मैं संसार के भय से उद्विग्न हो गया हूँ, जन्म-मरण से भयभीत हुआ हूँ। अतः मैं चाहता हूँ कि आप दोनों की आज्ञा प्राप्त होने पर श्रमण भगवान् महावीर के पास मुण्डित होकर गृहवास त्याग करके अनगार धर्म में प्रव्रजित होऊँ! विवेचन-जमालि द्वारा संसारविरक्ति एवं दीक्षा की अनुमति का संकेत-भगवान् महावीर से धर्मोपदेश सुन कर जमालि सीधे माता-पिता के पास आया। उनके समक्ष भगवान् के धर्म-प्रवचन की प्रशंसा की और उसके प्रभाव से स्वयं को वैराग्य उत्पन्न हुआ है, इसलिए माता-पिता से दीक्षा की आज्ञा देने का अनुरोध किया। यह सू. ३१ से ३३ तक वर्णन है।। संसारभउव्विग्गे आदि पदों का भावार्थ-संसारभउव्विग्गे–जन्म-मरण रूप संसार के भय से संवेग प्राप्त हुआ है। अब्भणुण्णाए समाणे-आपके द्वारा अनुज्ञा प्रदान होने पर। १. वियाहपए गत्तिसुत्तं (मू.पा. टिप्पण) भा. १, पृ. ५५९ २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४६७

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