Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३३
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कठिन शब्दों का भावार्थ-दुक्खाययणं- दुःखायतन-दुःखों का स्थान। विविहवाहि-सयसन्निकेयं— सैकड़ों विविध व्याधियों का निकेतन-घर । अट्ठिय-कट्ठट्ठियं अस्थिरूपी काष्ठ पर उत्थितखड़ा किया हुआ है। छिरा-पहारू-जाल-ओणद्ध, संपिणद्धं—शिराओं-नाड़ियों के जाल से वेष्टित और अच्छी तरह ढंका हुआ। मट्टियभंडं व दुब्बलं-मिट्ट के बर्तन की तरह कमजोर (टूटने वाला) है। असुइसंकिलिलैं—अशुचि (गंदगी) से संक्लिष्ट (दूषित या व्याप्त) है। अणिट्ठविय-सव्वकालसंठप्पयं-अनुस्थापित (टिकाऊ न) होने से सदा टिकाए रखना पड़ता है। जराकुणिम-जज्जरघरंजीर्ण शव और जीर्ण घर के समान ।
३९. तए णं तं जमालिं खत्तियकुमारं अम्मा-पियरो एवं वयासी-इमाओ य ते जाया! विपुलकुलबालियाओ कलाकुसलसव्वकाललालियसुहोचियाओ मद्दवगुणजुत्तनिउणविणओवयारपंडिय-वियक्खणाओ मंजुलमियमहुरभणियविहसियविप्पेक्खियगतिविलासचिट्ठियविसारदाओ अविकलकुलसीलसालिणीओ विसुद्धकुलवंसंताणतंतुवद्धणपगब्भवयभाविणीओ मणाणुकूलहियइच्छियाओ अट्ठ तुझ गुणवल्लभाओ उत्तमाओ निच्चं भावाणुरत्तसव्वंगसुंदरीओ भारियाओ,तं भुंजाहि ताव जाया! एताहिं सद्धिं विउले माणुस्सए कामभोगे, तओ पच्छा भुत्तभोगी विसयविगयवोच्छिन्नकोउहल्ले अम्हेहिं कालगएहिं जाव पव्वइहिसि।
[३९] तब क्षत्रियकुमार जमालि के माता-पिता ने उससे इस प्रकार कहा—पुत्र! ये तेरी गुणवल्लभा, उत्तम, तुझमें नित्य भावानुरक्त, सर्वांगसुन्दरी आठ पलियाँ हैं, जो विशाल कुल में उत्पन्न बालिकाएं (नवयौवनाएँ) हैं, कलाकुशल हैं, सदैव लालित (लाड़-प्यार में रही हुई) और सुखभोग के योग्य हैं। ये मार्दवगुण से युक्त, निपुण, विनय-व्यवहार (उपचार) में कुशल एवं विचक्षण हैं। ये मंजुल, परिमित और मधुर भाषिणी हैं। ये हास्य, विप्रेक्षित (कटाक्षपात), गति, विलास, और चेष्टाओं में विशारद हैं। निर्दोष कुल और शील से सुशोभित हैं, विशुद्ध कुलरूप वंशतन्तु की वृद्धि करने में समर्थ एवं पूर्णयौवन वाली हैं । ये मनोनुकूल एवं हृदय को इष्ट हैं। अत: हे पुत्र ! तू इनके साथ मनुष्यसम्बन्धी विपुल कामभोगों का उपभोग कर और बाद में जब तू भुक्तभोगी हो जाए और विषय-विकारों में तेरी उत्सुकता समाप्त हो जाए, तब हमारे कालधर्म को प्राप्त हो जाने पर यावत् तू प्रव्रजित हो जाना।
विवेचन-माता-पिता द्वारा भुक्तभोगी होने के बाद दीक्षा का अनुरोध-प्रस्तुत सूत्र में मातापिता द्वारा जमालि को समझाया गया है किन्तु अपनी उन आठ सर्वगुणसम्पन्ना सर्वांगसुन्दरी पलियों के साथ
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४६९ २. अधिक पाठ—“सरित्तयाओ सरिव्वयाओ सरिसलावण्णरूवजोव्वणगुणोववेयाओ सरिसएहितो कुलेहितो
आणिएल्लियाओ"