Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक - ३२
प्रकारान्तर से चौबीस दण्डकों में उत्पाद - उद्वर्तना-प्ररूपणा
४९. सओ भंते ! नेरइया उववज्जंति ? असओ भंते ! नेरइया उववज्जंति ?
गंगेया ! सओ नेरइया उववज्जंति, नो असओ नेरइया उववज्जंति । एवं जाव वेमाणिया । [४९ प्र.] भगवन्! सत् (विद्यमान) नैरयिक जीव उत्पन्न होते हैं या असत् (अविद्यमान) नैरयिक उत्पन्न होते हैं ?
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[ ४९ उ.] गांगेय ! सत् नैरयिक उत्पन्न होते हैं, असत् नैरयिक उत्पन्न नहीं होते। इसी प्रकार वैमानिकों तक जानना चाहिए।
५०. सओ भंते ! नेरइया उव्वट्टंति, असओ नेरइया उव्वट्टंति ?
गंगेया ! सओ नेरइया उव्वट्टंति, नो असओ नेरइया उव्वट्टंति । एवं जाव वेमाणिया, नवरं जोइसिय-वेमाणिएस 'चयंति' भाणियव्वं ।
[५० प्र.] भगवन् ! सत् नैरयिक उद्वर्तते हैं या असत् नैरयिक उद्वर्तते हैं ?
[५. उ.] गांगेय ! सत् नैरयिक उद्वर्तते हैं किन्तु असत् नैरयिक उद्वर्तित नहीं होते। इसी प्रकार वैमानिकों पर्यन्त जानना चाहिए। विशेष इतना है कि ज्योतिष्क और वैमानिक देवों के लिए 'च्यवते', ऐसा कहना चाहिए।
५१. [ १ ] सओ भंते ! नेरइया उववज्जंति, असओ नेरइया उववज्जंति ? सओ असुरकुमारा उववज्जंति जाव सओ वेमाणिया उववज्र्ज्जति, असओ वेमाणिया उववज्जंति ? सओ नेरइया उव्वट्टंति, असओ नेरइया उव्वट्टंति ? सओ असुरकुमारा उव्वट्टंति जाव सओ वेमाणिया चयंति, असओ वेमाणिया चयंति ?
गंगेया ! सओ नेरइया उववज्जंति, नो असओ नेरइया उववज्जंति, सओ असुरकुमारा उववज्जंति, नो असओ असुरकुमारा उववज्जंति, जाव सओ वेमाणिया उववज्जंति, नो असओ वेमाणिया उववज्र्ज्जति। सओ नेरइया उव्वट्टंति, नो असओ नेरइया उव्वट्टंति, जाव सओ वेमाणिया चयंति, नो असओ वेमाणिया० ।
[५१-१ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव सत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं या असत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं ? असुरकुमार देव, सत् असुरकुमार देवों में उत्पन्न होते हैं या असत् असुरकुमार देवों में ? इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिकों में उत्पन्न होते हैं या असत् वैमानिकों में ? तथा सत् नैरयिकों उद्वर्तते हैं या असत् नैरयिकों से? सत् असुरकुमारों में से उद्वर्तते हैं यावत् सत् वैमानिक में से च्यवते हैं या असत् वैमानिक में से च्यवते हैं ?
[५१-१ उ.] गांगेय ! नैरयिक जीव सत् नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु असत् नैरयिकों में उत्पन्न नहीं होते । सत् असुरकुमारों में उत्पन्न होते हैं, असत् असुरकुमारों में नहीं। इसी प्रकार यावत् सत् वैमानिकों में उत्पन्न