Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti

View full book text
Previous | Next

Page 525
________________ ४९४ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ८४ विकल्प होते हैं। इन्हें सात नरकों के समुत्पन्न एक भंग के साथ गुणाकार करने पर ८४ भंग कुल होते हैं। इस प्रकार दस नैरयिकों के नरकप्रवेशनक के असंयोगी ७ भंग, द्विकसंयोगी १८९, त्रिकसंयोगी १२६०, चतुष्कसंयोगी २९४०, पंचसंयोगी २६४६, षट्संयोगी ८८२ और सप्तसंयोगी ८४ भंग, ये सभी मिलकर दस नैरयिक जीवों के कुल ८००८ भंग होते हैं। संख्यात नैरयिकों के प्रवेशनकभंग २६. संखेन्जा भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा। गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७। अहवा एगे रयणप्पभाए संखेजा सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा दो रयण., संखेज्जा सक्करप्पभाए वा होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयण., संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा तिण्णि रयण., संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं एक्केक्को संचारेयव्वो जाव अहवा दस रयण., संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दसरयण.,संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा।अहवा संखेज्जा रयण.,संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा, जाव अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे सक्कर० संखेन्जा वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जहा रयणप्पभाए उवरिमपुढवीहिं समंचारिया एवं सक्करप्पभाए वि उवरिमपुढवीहिं समं चारेयव्वा। एवं एक्केक्का पुढवी उवरिमपुढवीहिं समं चारेयव्वा जाव अहवा संखेजा तमाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। २३१ । अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर० संखेन्जा वालुयप्पभाए होज्जा। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर० संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा। जाव अहवा एगे रयण. एगे सक्कर० संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयण., दो सक्कर० संखेज्जा वालुयप्पभाए होजा। जाव अहवा एगे रयण., दो सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयण., तिwिण सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं एक्केक्को संचारेयव्यो। अहवा एगे रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, जाव अहवा एगे रयण., संखेज्जा वालुय० एगे रयण., संखेज्जा वालुय०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा दो रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, जाव अहवा एगे रयण., संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। जाव अहवा दो रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा तिण्णि रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, जाव अहवा संखेज्जा रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयण., एगे वालुय०, संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा, जाव अहवा एगे १. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ४३८ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४७

Loading...

Page Navigation
1 ... 523 524 525 526 527 528 529 530 531 532 533 534 535 536 537 538 539 540 541 542 543 544 545 546 547 548 549 550 551 552 553 554 555 556 557 558 559 560 561 562 563 564 565 566 567 568 569 570 571 572 573 574 575 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606 607 608 609 610 611 612 613 614 615 616 617 618 619 620 621 622 623 624 625 626 627 628 629 630 631 632 633 634 635 636 637 638 639 640 641 642 643 644 645 646 647 648 649 650 651 652 653 654 655 656 657 658 659 660 661 662 663 664 665 666 667 668 669