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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र ८४ विकल्प होते हैं। इन्हें सात नरकों के समुत्पन्न एक भंग के साथ गुणाकार करने पर ८४ भंग कुल होते हैं।
इस प्रकार दस नैरयिकों के नरकप्रवेशनक के असंयोगी ७ भंग, द्विकसंयोगी १८९, त्रिकसंयोगी १२६०, चतुष्कसंयोगी २९४०, पंचसंयोगी २६४६, षट्संयोगी ८८२ और सप्तसंयोगी ८४ भंग, ये सभी मिलकर दस नैरयिक जीवों के कुल ८००८ भंग होते हैं। संख्यात नैरयिकों के प्रवेशनकभंग
२६. संखेन्जा भंते ! नेरइया नेरइयप्पवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा। गंगेया ! रयणप्पभाए वा होजा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७।
अहवा एगे रयणप्पभाए संखेजा सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा एगे रयणप्पभाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा दो रयण., संखेज्जा सक्करप्पभाए वा होज्जा, एवं जाव अहवा दो रयण., संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा तिण्णि रयण., संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं एक्केक्को संचारेयव्वो जाव अहवा दस रयण., संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा, एवं जाव अहवा दसरयण.,संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा।अहवा संखेज्जा रयण.,संखेज्जा सक्करप्पभाए होज्जा, जाव अहवा संखेज्जा रयणप्पभाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे सक्कर० संखेन्जा वालुयप्पभाए होज्जा, एवं जहा रयणप्पभाए उवरिमपुढवीहिं समंचारिया एवं सक्करप्पभाए वि उवरिमपुढवीहिं समं चारेयव्वा। एवं एक्केक्का पुढवी उवरिमपुढवीहिं समं चारेयव्वा जाव अहवा संखेजा तमाए, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। २३१ ।
अहवा एगे रयण०, एगे सक्कर० संखेन्जा वालुयप्पभाए होज्जा। अहवा एगे रयण., एगे सक्कर० संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा। जाव अहवा एगे रयण. एगे सक्कर० संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयण., दो सक्कर० संखेज्जा वालुयप्पभाए होजा। जाव अहवा एगे रयण., दो सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयण., तिwिण सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं एक्केक्को संचारेयव्यो। अहवा एगे रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, जाव अहवा एगे रयण., संखेज्जा वालुय० एगे रयण., संखेज्जा वालुय०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा दो रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, जाव अहवा एगे रयण., संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा। जाव अहवा दो रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा तिण्णि रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा वालुयप्पभाए होज्जा, जाव अहवा संखेज्जा रयण., संखेज्जा सक्कर०, संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। अहवा एगे रयण., एगे वालुय०, संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा, जाव अहवा एगे १. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ४३८
(ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४७