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________________ नवम शतक : उद्देशक-३२ ४९३ इत्यादि (पूर्ववत्) प्रश्न। [२५ उ.] गांगेय! वे दस नैरयिक जीव, रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं (७ असंयोगी भंग)। _अथवा एक रत्नप्रभा में और नौ शर्कराप्रभा में होते हैं, इत्यादि जिस प्रकार नौ नैरयिक जीवों के द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुःसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी एवं सप्तसंयोगी भंग कहे गए हैं, उसी प्रकार दस नैरयिक जीवों के भी (द्विकसंयोगी यावत् सप्तसंयोगी) भंग कहने चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ एकएक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए, शेष सभी भंग पूर्ववत् जानने चाहिए। उनका अन्तिम आलापक (भंग) इस प्रकार है-अथवा चार रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है(४+१+१+१+१+१+१)। विवेचन दस नैरयिकों के असंयोगी भंग केवल सात होते हैं। द्विकसंयोगी १८९ भंग—इनके ९ विकल्प होते हैं। यथा १-९, २-८, ३-७, ४-६, ५-५, ६-४, ७-३,८-२,९-१ । इन ९ विकल्पों के साथ सात नरकों के संयोग से जनित २१ भंगों को गुणा करने पर कुल १८९ भंग होते हैं। त्रिकसंयोगी १२६० भंग-इनके ३६ विकल्प होते हैं यथा-१-१-८,१-२-७,१-३-६, १-४५,१-५-४,१-६-३,१-७-२,१-८-१,२-७-१,२-६-२,२-५-३, २-४-४, २-३-५, २-२-६, २१-७, ३-६-१,३-५-२,३-४-३, ३-३-४, ३-२-५, ३-१-६,४-५-१,४-४-२,४-३-३,४-२-४, ४-१-५,५-४-१,५-३-२,५-२-३,५-१-४,६-३-१,६-२-२,६-१-३,७-२-१,७-१-२ और ८-. १-१ । इन ३६ विकल्पों को सात नरकों के संयोग से जनित पूर्वोक्त ३५ भंगों के साथ गुणा करने पर कुल १२६० भंग होते हैं। चतुष्कसंयोगी २९४० भंग- इनके १-१-१-७ इत्यादि प्रकार से अंकों के परस्पर चालन से ८४ विकल्प होते हैं। इन ८४ विकल्पों को सात नरकों के संयोग से जनित पूर्वोक्त ३५ भंगों के साथ गुणा करने पर कुल भंगों की संख्या २९४० होती है। पंचसंयोगी २६४६ भंग- इनके १-१-१-१-६ इत्यादि प्रकार से अंकों के परस्पर चालन से १२६ विकल्प होते हैं। इन १२६ विकल्पों को सात नरकों के संयोग से (पूर्ववत्) जनित २१ भंगों के साथ गुणा करने पर १२६४२१ = २६४६ कुल भंग होते हैं। षट्संयोगी ८८२ भंग-इनके १-१-१-१-१-५ इत्यादि प्रकार से अंकों के परस्पर चालन करने से १२६ विकल्प होते हैं। इन १२६ विकल्पों को सात नरकों के संयोग से जनित ७ भंगों के साथ गुणा करने पर भंगों की कुल संख्या ८८२ होती है। सप्तसंयोगी ८४ भंग- इनके १-१-१-१-१-१-४ इत्यादि प्रकार से अंकों के परस्पर चालन से
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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