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________________ ४९२ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र १६८ होती है। त्रिकसंयोगी ७८० भंग—इसके २८ विकल्प होते हैं । यथा—१-१-७, २-३-४, ४-१-४,१-२६,२-४-३,४-२-३,१-३-५,२-५-२,४-३-२,१-४-४,२-६-१,४-४-१,१-५-३,३-१-५,५१-३, १-६-२,३-२-४,५-२-२,१-७-१, ३-३-३,५-३-१, २-१-६, ३-४-२, ६-१-२, २-२-५, ३-५-१,६-२-१ और ७-१-१। इन २८ विकल्पों को सात नरकों के संयोग के जनित ३५ भंगों के साथ गुणा करने पर कुल भंगों की संख्या ७८० होती है। चतुष्कसंयोगी १९६० भंग- इसके १-१-१-६ इस प्रकार चतुःसंयोगी ५६ विकल्प होते हैं। इन्हें सात नरकों के संयोग से जनित (पूर्वोक्त) ३५ भंगों के साथ गुणा करने पर भंगों की संख्या १९६० होती है। पंचसंयोगी १४७० भंग-इसके पंचसंयोगी १-१-१-१-५ इत्यादि प्रकार से ७० विकल्प होते हैं। इन्हें सात नरकों के संयोग से जनित २१ भंगों के साथ गुणा करने पर कुल भंगों की संख्या १४७० होती है। षट्संयोगी ३९२ भंग-इसके १-१-१-१-१-४ इत्यादि प्रकार से ५६ विकल्प होते हैं। इन विकल्पों को सात नरकों के संयोग से जनित ७ भंगों के साथ गुणा करने पर कुल ३९२ भंग होते हैं। सप्तसंयोगी २८ भंग-इसके १-१-१-१-१-१-३ इत्यादि प्रकार के २८ विकल्प ोते हैं, इनका सात नरकों में से प्रत्येक के साथ संयोग करने से केवल २८ भंग ही होते हैं। इस प्रकार नौ नैरयिकों के नरकप्रवेशनक के एक संयोगी (असंयोगी) ७ भंग, द्विकसंयोगी १६८, त्रिकसंयोगी ९८०, चतुष्कसंयोगी १९६०, पंचसंयोगी १४७०, षट्संयोगी ३९२ और सप्तसंयोगी २८ भंग, ये सब मिलाकर ५००५ भंग हुए। दस नैरयिकों के प्रवेशनकभंग २५. दस भंते ! नेरइया नेरइयपवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा। गंगेया ! रयणप्पभाए होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७। अहवा १+९ एगे रयणप्पभाए, नव सक्करप्पभाए होज्जा। एवं दुयासंजोगो जाव सत्तसंजोगो य जहा नवण्हं, नवरं एक्केक्को अब्भहिओ संचारेयव्वाओ सेसं तं चेव। अपच्छिमआलावगो-अहवा ४+१+१+१+१+१+१, चत्तारि रयण० एगे सक्करप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा। ८००८। [२५ प्र.] भगवन् ! दस नैरयिकजीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में होते हैं १. (क) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ४३७ (ख) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४६
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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