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नवम शतक : उद्देशक-३२
४९१ 'संख्याचालन से २१ विकल्प। इनके साथ सात नरकों के संयोग से जनित ७ भंगों का गुणा करने से कुल भंगों की संख्या १४७ होती है।
सप्तसंयोगी ७ भंग इनके २७ विकल्प होते हैं। यथा-१-१-१-१-१-१-२, १-१-१-१-१२-१, १-१-१-१-२-१-१,१-१-१-२-१-१-१, १-१-२-१-१-१-१,१-२-१-१-१-१-१, २-११-१-१-१-१। इन सात विकल्पों का प्रत्येक नरक के साथ संयोग करने से केवल ७ भंग होते हैं।
इस प्रकार आठ नैरयिकों के नरकप्रवेशनक के असंयोगी ७ भंग, द्विकसंयोगी, १४७, त्रिकसंयोगी ७३५, चतुष्कसंयोगी १२२५, पंचसंयोगी ७३५, षट्संयोगी १४७ और सप्तसंयोगी ७ भंग कुल मिलाकर सब भंग ३००३ होते हैं। नौ नैरयिकों के प्रवेशनकभंग
२४. नव भंते ! नेरतिया नेरतियपवेसणएणं पविसमाणा० पुच्छा। गंगेया ! रयणप्पभाए वा होज्जा जाव अहेसत्तमाए वा होज्जा ७।
अहवा १-८ एगे रयण. अट्ठ सक्करप्पभाए होज्जा। एवं यासंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा अट्ठण्हं भणियं तहा नवण्हं पि भाणियव्वं, नवरं एक्केक्को अब्भहिओ संचारेयव्वो, सेसं तं चेव। पच्छिमो आलावगो—अहवा तिण्णि रयण.. एगे सक्कर० एगे वालुय. जाव एगे अहेसत्तमाए वा होज्जा। ५००५।
[२४ प्र.] भगवन् ! नौ नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[२४ उ.] हे गांगेय! वे नौ नैरयिक जीव रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
अथवा एक रत्नप्रभा में और आठ शर्कराप्रभा में होते हैं, इत्यादि जिस प्रकार आठ नैरयिकों के द्विकसंयोगी, त्रिकसंयोगी, चतुष्कसंयोगी, पंचसंयोगी, षट्संयोगी और सप्तसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार नौ नैरयिकों के विषय में भी कहना चाहिए। विशेष यह है कि एक-एक नैरयिक का अधिक संचार करना चाहिए। शेष सभी पूर्वोक्त प्रकार से जानना चाहिए। अन्तिम भंग इस प्रकार है—अथवा तीन रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में एक बालुकाप्रभा में, यावत् एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
विवेचन–नौ नैरयिकों के असंयोगी भंग-सात होते हैं।
द्विकसंयोगी १६८ भंग- इनके १-८,२-७, ३-६,४-५,६-३,५-४,७-२,८-१ ये ८ विकल्प होते हैं । इन ८ विकल्पों को सात नरकों के संयोग से जनित २१ भंगों से गुणा करने पर कुल भंगों की संख्या १. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४४६
(ख) वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पणयुक्त) भा. १, पृ. ४३६
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