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________________ ४९५ नवम शतक : उद्देशक-३२ रयण.,एगेवालुय., संखेज्जाअहेसत्तमाए होज्जा।अहवाएगे रयण.,दो वालुय.,संखेज्जा पंकप्पभाए होज्जा। एवं एएणं कमेणं तियासंजोगो चउक्कसंजोगो जाव सत्तगसंजोगो य जहा दसण्हं तहेव भाणियव्वो। पच्छिमो आलावगो सत्तसंजोगस्स–अहवा संखेज्जा रयण., संखेज्जा सक्कर, जाव संखेज्जा अहेसत्तमाए होज्जा। ३३३७ । [२६. प्र.] भगवन् ! संख्यात नैरयिक जीव, नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। [२६ उ.] गांगेय! संख्यात नैरयिक रत्नप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (ये असंयोगी ७ भंग होते हैं।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में होता है, और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं, (२-६) इसी प्रकार यावत् एक रत्नप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (ये ६ भंग हुए।) (१) अथवा दो रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं (२-६) इसी प्रकार यावत् दो रत्नप्रभा में, और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । ( ये सभी ६ भंग हुए।) (१) अथवा तीन रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं। इसी प्रकार इसी क्रम में एक-एक नारक का संचार करना चाहिए। यावत् दस रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् अथवा दस रत्नप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। अथवा संख्यात रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् संख्यात रत्नप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। अथवा एक शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। जिस प्रकार रत्नप्रभापृथ्वी का शेष नारकपृथ्वियों के साथ संयोग किया, उसी प्रकार शर्कराप्रभापृथ्वी का भी आगे की सभी नरक-पृथ्वियों के साथ संयोग करना चाहिए। इसी प्रकार एक-एक पृथ्वी का आगे की नरक-पृथ्वियों के साथ संयोग करना चाहिए, यावत् अथवा संख्यात तमःप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (इस प्रकार विकसंयोगी भंगों की कुल संख्या २३१ हुई।) (१) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। (२) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं। इसी प्रकार यावत् (३-५) एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। अथवा एक रत्नप्रभा में, तीन शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं । इस प्रकार इसी क्रम से
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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