Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३२
४९९ अहवा रयणप्पभाए य, सक्करप्पभाए य, वालुयप्पभाए य होज्जा। एवं जाव अहवा रयण., सक्करप्पबाए य, अहेसत्तमाए य होज्जा ५। अहवा रयण., वालुय०, पंकप्पभाए य होज्जा, जाव अहवा रयण., वालुय० अहेसत्तमाए य होज्जा ४। अहवा रयण., पंकप्पभाए य, धूमाए य होज्जा। एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा तिण्हं तियासंजोगो भणिओ तहा भाणियव्वं जाव अहवा रयण., तमाए य, अहेसत्तमाए य होज्जा १५।
अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय० पंकप्पभाए य होज्जा। अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय०, धूमप्पभाए य होज्जा, जाव अहवा रयणप्पभाए, सक्करप्पभाए, वालुय०, अहेसत्तमाए य होज्जा ४। अहवा रयण., सक्कर०, पंक०, धूमप्पभाए य होज्जा। एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा चउण्हं चउक्कसंजोगो तहा भाणियव्वं जाव अहवा रयण, धूम०, तमाए, अहेसत्तमाए होज्जा २०। अहवा रयण., सक्कर०, वालुय०, पंक०, धूमप्पभाए य होज्जा १। अहवा रयणप्पभाए जाव पंक०, तमाए य होज्जा २। अहवा रयण., जाव पंक० अहेसत्तमाए य होज्जा ३। अहवा रयण०, सक्कर०, वालुय०, धूम०, तमाए य होज्जा ४। एवं रयणप्पभं अमुयंतेसु जहा पंचण्हं पंचकसंजोगो तहा भाणियव्वं जाव अहवा रयण., पंकप्पभा, जाव अहेसत्तमाए होज्जा १५।
अहवा रयण., सक्कर०, जाव धूमप्पभाए, तमाए य होज्जा १। अहवा रयण., जाव धूम०, अहेसत्तमाए य होज्जा २। अहवा रयण., सक्कर०, जाव पंक०, तमाए य अहेसत्तमाए य होज्जा ३। अहवारयण., सक्कर०, वालुय०, धूमप्पभाए, तमाए, अहेससमाए होज्जा ४।अहवा रयण., सक्कर०, पंक., जाव अहेसत्तमाए य होज्जा ५। अहवा रयण., वालुय० जाव अहेसत्तमाए होज्जा ६। अहवा रयणप्पभाए य, सक्कर०, जाव अहेसत्तमाए होज्जा १।
[२८ प्र.] भगवन् ! नैरयिक जीव नैरयिक-प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए उत्कृष्ट पद में क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न।
[२८ उ.] गांगेय! उत्कृष्टपद में सभी नैरयिक रत्नप्रभा में होते हैं।
(द्विकसंयोगी ६ भंग)-(१) अथवा रत्नप्रभा और शर्कराप्रभा में होते हैं । (२) अथवा रत्नप्रभा और बालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् (३-६) रत्नप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
(त्रिकसंयोगी १५ भंग)-(१) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और बालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् (२-५) रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा और अध:सप्तमपृथ्वी में होते हैं । (६) अथवा रत्नप्रभा वालुकाप्रभा
और पंकप्रभा में होते हैं। यावत् (७-९) अथवा रत्नप्रभा, वालुकाप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (१०) अथवा रत्नप्रभा, पंकप्रभा और धूमप्रभा में होते हैं । जिस प्रकार रत्नप्रभा को न छोड़ते हुए तीन नैरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए यावत् (१५) अथवा रत्नप्रभा, तमःप्रभा और अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
(चतुःसंयोगी २० भंग)-(१) अथवा रत्नप्रभा, शर्कराप्रभा, बालुकाप्रभा और पंकप्रभा में होते हैं।