Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३२
५०१ षट्संयोगी ६ भंग-१-२-३-४-५-६, १-२-३-४-५-७, १-२-३-४-६-७, १-२-३-५-६७,१-२-४-५-६-७, और १-३-४-५-६-७ ।
सप्तसंयोगी १ भंग-१-२-३-४-५-६-७ ।' रत्नप्रभादि नैरयिक प्रवेशनकों का अल्पबहुत्व
२९. एयस्स णं भंते ! रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणगस्स सक्करप्पभापुढवि. जाव अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणगस्स य कयरे कयरेहितो अप्पा वा जाव विसेसाहिए वा ?
गंगेया ! सव्वत्थोवे अहेसत्तमापुढविनेरइयपवेसणए, तमापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे, एवं पडिलोमगं जाव रयणप्पभापुढविनेरइयपवेसणए असंखेज्जगुणे।
[२९ प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभामपृथ्वी के नैरयिकप्रवेशनक, शर्कराप्रभापृथ्वी के नैरयिक-प्रवेशनक यावत् अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक-प्रवेशनक में से कौन प्रवेशनक, किस प्रवेशनक से अल्प यावत् विशेषाधिक है ?
[२९ उ.] गांगेय! सबसे अल्प अधःसप्तमपृथ्वी के नैरयिक-प्रवेशनक हैं, उनसे तमःप्रभापृथ्वी नैरयिक प्रवेशनक असंख्यातगुण हैं । इस प्रकार उलटे क्रम से, यावत् रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिक प्रवेशनक असंख्यातगुण
- विवेचन–अधःसप्तमपृथ्वी में जाने वाले जीव सबसे थोड़े हैं। उनकी अपेक्षा तमःप्रभा में जाने वाले असंख्यातगुण हैं । इस प्रकार विपरीत क्रम से एक-एक से आगे के असंख्यातगुणे हैं।
कठिन शब्दों का भावार्थ-एयस्स णं. इनमें से। पडिलोमगं—प्रतिलोम-विपरीत क्रम से।' तिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक : प्रकार और भंग
३०. तिरिक्खजोणियपवेसणए णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
गंगेया ! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा-एगिदियतिरिक्खजोणियपवेसणए जाव पंचेंदियतिरिक्खजोणियपवेसणए।
[३० प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक प्रवेशनक कितने प्रकार का कहा गया है ?
[३० उ.] गांगेय! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा एकेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक यावत् पंचेन्द्रियतिर्यञ्चयोनिक-प्रवेशनक।
. ३१. एगे भंते ! तिरिक्खजोणिए तिरिक्खजोणियपवेसणएणं पविसमाणे किं एगिदिएसु होजा जाव पंचिदिएसु होज्जा?
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं (मूलपाठ-टिप्पण) भा. १, पृ. ४४१-४४२. २. भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी), भा. ४, पृ. १६६६ ३. भगवती. विवेचन (पं. घेवरचन्दजी), भा. ४, पृ. १६६६