Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
४९६
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र एक-एक नारक का अधिक संचार करना चाहिए।
अथवा एक रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, संख्यात बालुकाप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
अथवा दो रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा दो रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात.अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
__ अथवा तीन रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं। इस प्रकार इस क्रम से रत्नप्रभा में एक-एक नैरयिक का संचार करना चाहिए, यावत् अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं, यावत् अथवा एक रत्नप्रभा में, एक बालुकाप्रभा में और संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
अथवा एक रत्नप्रभा में, दो बालुकाप्रभा में और संख्यात पंकप्रभा में होते हैं।
इसी प्रकार इसी क्रम में त्रिकसंयोगी, चतुष्कसंयोगी, यावत् सप्तसंयोगी भंगों का कथन, दस नैरयिकसम्बन्धी भंगों के समान करना चाहिए।अन्तिम भंग (आलापक) जो सप्तसंयोगी है, यह है—अथवा संख्यात रत्नप्रभा में, संख्यात शर्कराप्रभा में यावत् संख्यात अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं।
विवेचन—संख्यात का स्वरूप आगमिक परिभाषानुसार यहाँ ग्यारह से लेकर शीर्षप्रहेलिका तक की संख्या को संख्यात कहा गया है।
असंयोगी ७ भंग-प्रत्येक नरक के साथ संख्यात का संयोग होने से असंयोगी या एक संयोगी७ भंग होते हैं।
द्विकसंयोगी २३१ भंग-द्विकसंयोगी में संख्यात के दो विभाग किये गए हैं, इसलिए एक और संख्यात, दो और संख्यात, यावत् दस और संख्यात तथा संख्यात और संख्यात इस प्रकार एक विकल्प के ११ भंग होते हैं।
ये विकल्प रत्नप्रभादि पृथ्वियों के साथ आगे की पृथ्वियों का संयोग करने पर एक से लेकर संख्यात तक ग्यारह पदों का संयोग करने से और शर्कराप्रभादि पृथ्वियों के साथ केवल संख्यात पद का संयोग करने से बनते
रत्नप्रभादि पूर्व-पूर्व की पृथ्वियों के साथ संख्यात पद का संयोग और आगे-आगे की पृथ्वियों के साथ एकादि पदों का संयोग करने से जो भंग होते हैं, उनकी विवक्षा यहाँ नहीं की गई है। अर्थात् एक रत्नप्रभा में और संख्यात शर्कराप्रभा में होते हैं तथा एक रत्नप्रभा में और संख्यात बालुकाप्रभा में होते हैं । यही क्रम यहाँ