Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३२
४८५ सक्कर०, चत्तारि पंकप्पभाए होज्जा २।एवं जाव अहवा एगे रयण० एगे सक्कर० चत्तारि अहेसत्तमाए होज्जा ५ अहवा एगे रयण., दो सक्कर०, तिण्णि वालुयप्पभाए होज्जा ६। एवं एएणं कमेणं जहा पंचण्हं तियासंजोगो भणिओ तहा छण्ह वि भाणियब्वो, नवरं एक्को अब्भिहिओ उच्चारेयव्वो, सेसं तं चेव। ३५०।
चउक्कसंजोगो वि तहेव। ३५०।
पंचगसंजोगो वि तहेव, नवरं एक्को अब्भहिओ संचारेयव्वो जाव पच्छिमो भंगो—अहवा दो वालुय०, एगे पंक०, एगे धूम०, एगे तम०, एगे अहेसत्तमाए होज्जा। १०५।
अहवा एगे रयण. एगे सक्कर० जाव एगे तमाए होज्जा १, अहवा एगे रयण जाव एगे धूम., एगे अहेसत्तमाए होज्जा २।अहवा एगे रयण जाव एगे पंक एगे तमाए एगे अहेसत्तमाए होज्जा ३, एहवा एगे रयण. जाव एगे वालुय० एगे धूम० एगे अहेसत्तमाए होज्जा ४, अहवा एगे रयण. एगे सक्कर० एगे पंक० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा ५, अहवा एगे रयण० एगे वालुय० जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा ६, अहवा एगे सक्करप्पभाए एगे वालुयप्पभाए जाव एगे अहेसत्तमाए होज्जा ७। ९२४।।
[२१ प्र.] भगवन्! छह नैरयिक जीव, नैरयिक प्रवेशनक द्वारा प्रवेश करते हुए क्या रत्नप्रभा में उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि प्रश्न। .
[२१ उ.] गांगेय! वे रत्नप्रभा में होते हैं, अथवा यावत् अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। ( इस प्रकार ये असंयोगी ७ भंग होते हैं।)
(द्विकसंयोगी १०५ भंग)-(१) अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच शर्कराप्रभा में होते हैं। (२) अथवा एक रत्नप्रभा में और पांच बालुकाप्रभा में होते हैं। अथवा (३-६) यावत् एक रत्नप्रभा में और पांच अध:सप्तमपृथ्वी में होते हैं। (१) अथवा दो रत्नप्रभा में और चार शर्कराप्रभा में होते हैं, अथवा (२-६) यावत् दो रत्नप्रभा में और चार अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं। (१) अथवा तीन रत्नप्रभा में और तीन शर्कराप्रभा में होते हैं। इस क्रम द्वारा जिस प्रकार पांच नैरयिक जीवों के द्विकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार छह नैरयिकों के भी कहने चाहिए। विशेष यह है कि यहाँ एक अधिक का संचार करना चाहिए, यावत् अथवा पांच तमःप्रभा में और एक अधःसप्तमपृथ्वी में होता है।
(त्रिकसंयोगी ३५० भंग)-(१) एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और चार बालुकाप्रभा में होते हैं। (२) अथवा एक रत्नप्रभा में एक शर्कराप्रभा में और चार पंकप्रभा में होते हैं। इस प्रकार यावत् (३-५) अथवा एक रत्नप्रभा में, एक शर्कराप्रभा में और चार अधःसप्तमपृथ्वी में होते हैं । (६) अथवा एक रत्नप्रभा में, दो शर्कराप्रभा में और तीन बालुकाप्रभा में होते हैं। इस क्रम में जिस प्रकार पांच नैरयिक जीवों के त्रिकसंयोगी भंग कहे हैं, उसी प्रकार छह नैरयिक जीवों के भी त्रिकसंयोगी भंग कहने चाहिए। विशेष इतना ही