Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र भवग्रहण तथा उत्कृष्टतः एक समय कम २२ हजार वर्ष तक रहता है।
४०. एवं सव्वेसिं सव्वबंधो एक्कं समयं, देसबंधो जेसिं नत्थि वेउब्वियसरीरं तेसिं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं जा जस्स उक्कोसिया ठिती सा समऊणा कायव्वा। जेसिं पुण अत्थि वेउव्वियसरीरं तेसिं देसबंधो जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणंजा जस्स ठिती सा समऊणा कायव्वा जाव मणुस्साणं देसबंधे जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं समयूणाई।
[४०] इस प्रकार सभी जीवों का सर्वबंध एक समय तक रहता है। जिनके वैक्रियशरीर नहीं है, उनका देशबंध जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभवग्रहण पर्यन्त और उत्कृष्टत: जिस जीव की जितनी उत्कृष्टतः आयुष्य-स्थिति है, उससे एक समय कम तक रहता है। जिनके वैक्रियशरीर है, उनके देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः जिसकी जितनी (आयुष्य) स्थिति है, उसमें से एक समय कम तक रहता है। इस प्रकार यावत् मनुष्यों का देशबंध जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टतः एक समय कम तीन पल्योपम तक जानना चाहिए।
४१. ओरालियसरीरबंधंतरंणं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ।
गोयमा! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाई पुव्वकोडिसमयाहियाई। देसबंधंतरं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं तिससयाहियाइं।
[४१ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर के बंध का अन्तर कितने काल का होता है ?
[४१ उ.] गौतम! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यतः तीन समय कम क्षुल्लकभव-ग्रहण पर्यन्त और उत्कृष्टतः समयाधिक पूर्वकोटि तथा तेतीस सागरोपम है। देशबंध का अन्तर जघन्यतः एक समय और उत्कृष्टः तीन समय अधिक तेतीस सागरोपम है।
४२. एगिदियओरालिय० पुच्छा।
गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं खुड्डागं भवग्गहणं तिसमयूणं, उक्कोसेणं बावीसं वाससहस्साई समयाहियाई। देसबंधंतरं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं अंतोमुहुत्तं ।
[४२ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-बंध का अन्तर काल कितने का है ?
[४२ उ.] गौतम! इसके सर्वबंध का अन्तर जघन्यत: तीन समय कम क्षुल्लकभव-ग्रहण पर्यन्त है और उत्कृष्तः एक समय अधिक बाईस हजार वर्ष है। देशबंध का अन्तर जघन्य एक समय का और उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त का है।
४३. पुढविक्काइयएगिंदिय० पुच्छा।
गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहेव एगिंदियस्स तहेव भाणियव्वं, देसबंधंतरं जहन्नेणं एक्कं समयं, उक्कोसेणं तिण्णि समया।