Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-९
३९३ प्रयोगनामकर्म के उदय से दर्शनावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है, कहना चाहिए।
१००. सायावेयणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा! पाणाणुकंपयाए भूयाणुकंपयाए, एवं जहा सत्तमसए दुस्समा-उ (छठ्ठ) इसए जाव अपरियावणयाए (स. ७ उ. ६ सु. २४) सायावेयणिज्जकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं सायावेयणिज्जकम्मा जाव पयोगबंधे।
[१०० प्र.] भगवन् ! सातावेदनीयकर्मशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ?
[१०० उ.] गौतम! प्राणियों पर अनुकम्पा करने से, भूतों (चार स्थावर जीवों) पर अनुकम्पा करने से इत्यादि, जिस प्रकार (भगवतीसूत्र के) सातवें शतक के दुःषम नामक छठे उद्देशक (सू. २४) में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी प्राणों, भूतों, जीवों और सत्वों को परिताप उत्पन्न न करने से तथा सातावेदनीयकर्मशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से सातावेदनीयकर्मशरीरप्रयोगबंध होता है तक कहना चाहिए।
१०१. अस्सायावेयणिज्ज. पुच्छा।
गोयमा! परदुक्खणयाए परसोयणयाए जहा सत्रामसए दुस्समा-उ (छठ्ठ) (सए जाव परियावणयाए ( स. ७ उ. ६ सु. २८) अस्सायावेयणिज्जकम्मा जाव पयोगबंधे।
[१०१ प्र.] भगवन् ! असातावेदनीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? __ [१०१ उ.] गौतम! दूसरे जीवों को दुःख पहुंचाने से, उन्हें शोक उत्पन्न करने से इत्यादि, जिस प्रकार (भगवतीसूत्र के) सातवें शतक के 'दुःषम' नामक छठे उद्देशक (के सूत्र २८) में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी, उन्हें परिताप उत्पन्न करने से तथा असातावेदनीयकर्मशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से असातावेदनीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है तक कहना चाहिए।
१०२. मोहणिज्जकम्मासरीरप्पयोग. पुच्छा।
गोयमा ! तिव्वकोहयाए तिव्वमाणयाए तिव्वमायाए तिव्वलोभाए तिव्वदंसणमोहणिज्जयाए तिव्वचरित्तमोहणिज्जयाए मोहणिज्जकम्मासरीर जाव पयोगबंधे।
[१०२ प्र.] भगवन् ! मोहनीयकर्मशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? __ [१०२ उ.] गौतम! तीव्र क्रोध से, तीव्र मान से, तीव्र माया से, तीव्र लोभ से, तीव्र दर्शनमोहनीय से और तीव्र चारित्रमोहनीय से तथा मोहनीयकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से मोहनीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता
१०३. नेरइयाउयकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! पुच्छा.।
गोयमा! महारंभयाए महापरिग्गहयाए पंचिंदियवहेणं कुणिमाहारेणं नेरइयाउयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं नेरइयाउयकम्मासरीर. जाव पयोगबंधे। - [१०३ प्र.] भगवन् ! नैरयिकायुष्यकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? .