Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गोयमा ! देसबंधे, णो सव्वबंधे। [११२-१ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध है अथवा सर्वबंध है ? [११२-१ उ.] गौतम! वह देशबंध है, सर्वबंध नहीं है । [२] एवं जाव अंतराइयकम्मासरीरप्पओगबंधे। . [११२-२] इसी प्रकार अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध तक जानना चाहिए। ११३. णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ?
गोयमा!णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे दुविहे पण्णत्ते,तं जहा—अणाईए सपज्जवसिए, अणाईए अपज्जवसिए वा, एवं जहा तेयगसरीरसंचिट्ठणा तहेव ।
[११३ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध कालतः कितने काल तक रहता है ?
[११३ उ.] गौतम! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध (काल की अपेक्षा) दो प्रकार का कहा गया है, यथा-अनादि-सपर्यवसित और अनादि-अपर्यवसित। जिस प्रकार तैजसशरीर प्रयोगबंध का स्थितिकाल (सू. ९४ में) कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। .११४. एवं जाव अंतराइयकम्मस्स। [११४] इसी प्रकार अन्तरायकर्म (कार्मणशरीरप्रयोगबंध के स्थितिकाल) तक कहना चाहिए। ११५. णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधतरं णं भंते ! कालओ केवच्चिर होइ ? गोयमा! अणाईयस्स० एवं जहा तेयगसरीरस्स अंतरं तहेव। [११५ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ?
[११५ उ.] गौतम! ( ज्ञानावरणीयकार्मणशरीरप्रयोगबंध के कालतः) अनादि-अपर्यवसित और अनादि-सपर्यवसित (इन दोनों रूपों) का अन्तर नहीं होता। जिस प्रकार तैजसशरीरप्रयोगबंध के अन्तर के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए।
११६. एवं जाव अंतराइयस्स। [११६] इसी प्रकार अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध के अन्तर तक समझना चाहिए।
११७. एएसि णं भंते ! जीवाणं नाणावरणिज्जस्स देसबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो.?
जाव अप्पाबहुगं जहा तेयगस्स।
[११७ प्र.] भगवन् ! ज्ञानावरणीयकार्मणशरीर के इन देशबंधक और अबंधक जीवों में कौन किससे अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ?