Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक - ९
३९५
१०८. असुभनामकम्मासरीर० पुच्छा ।
गोयमा ! कायअणुज्जुययाए भावअणुज्जुययाए भासअणुज्जुययाए विसंवायणाजोगेणं असुभनामकम्मा० जाव पयोगबंधे।
[१०८ प्र.] भगवन्! अशुभनामकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ?
[१०८ उ.] गौतम ! काया की वक्रता से, भावों की वक्रता से, भाषा की वक्रता (अनृजुता) से तथा विसंवादनयोग से एवं अशुभनामकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से अशुभनामकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है ।
१०९. उच्चागोयकम्मासरीर० पुच्छा ।
गोयमा ! जातिअमदेणं कुलअमदेणं बलअमदेणं रूवअमदेणं तवअमदेणं सुयअमदेणं लाभअमदेणं इस्सरियअमदेणं उच्चागोयकम्मासरीर. जाव पयोगबंधे ।
[१०९ प्र.] भगवन्! उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ।
- [ १०९ उ.] गौतम ! जातिमद न करने से, कुलमद न करने से, बलमद न करने से, रूपमद न करने से, तपोमद न करने से, श्रुतमद (ज्ञान का मद) न करने से, लाभमद न करने से और ऐश्वर्यमद न करने से तथा उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से उच्चगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है ।
'११०. नीयागोयकम्मासरीर० पुच्छा ।
गोयमा ! जातिमदेणं कुलमदेणं बलमदेणं जाव इस्सरियमदेणं णीयागोयकम्मासरीर॰ जाव पयोगबंधे।
[११० प्र.] भगवन् ! नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ?
[११० उ.] गौतम! जातिमद करने से, कुलमद करने से, बलमद करने से, यावत् (रूपमद करने से, तपोमद करने से, श्रुतमद करने से, लाभमद करने से और) ऐश्वर्यमद करने से तथा नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से नीचगोत्रकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है।
१११. अंतराइयकम्मासरीर० पुच्छा ।
गोयमा ! दाणंतराएणं लाभंतराएणं भोगंतराएणं उवभोगंतराएणं वीरियंतराएणं अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं अंतराइयकम्मासरीरप्पयोगबंधे ।
[१११ प्र.] भगवन्! अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ।
[ १११ उ.].गौतम ! दानान्तराय से, लाभान्तराय से, भोगान्तराय से, उपभोगान्तराय से और वीर्यान्तराय से तथा अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से अन्तरायकार्मणशरीरप्रयोगबंध होता है।
११२. [ १ ] णाणावरणिज्जकम्मासरीरप्पयोगबंधे णं भंते! किं देवबंधे सव्वबंधे ?