Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-९ बंधक है, या अबंधक है ?
[१२०-२ उ.] गौतम! वह बंधक नहीं, अबंधक है। [३] तेयासरीरस्स किं बंधए, अबंधए ? गोयमा! बंधए, नो अबंधए।
[१२०-३ प्र.] भगवन् ! (जिस जीव के औदारिकशरीर का सर्वबंध है) क्या वह जीव तैजसशरीर का बंधक है,या अबंधक है?
[१२०-३ उ.] गौतम! वह बंधक है, अबंधक नहीं। [४] जइ बंधए किं देसबंधए, सव्वबंधए ? गोयमा! देसबंधए, नो सव्वबंधए। [१२०-४ प्र.] भगवन् ! यदि वह तैजसशरीर का बंधक है, तो क्या वह देशबंधक है या सर्वबंधक है ? [१२०-४ उ.] गौतम! वह देशबंधक है, सर्वबंधक नहीं है। [५] कम्मासरीरस्स किं बंधए, अबंधए। जहेव तेयगस्स जाव देसबंधए, नो सव्वबंधए। [१२०-५ प्र.] भगवन् ! औदारिकशरीर का सर्वबंधक जीव कार्मणशरीर का बंधक है या अबंधक है ?
[१२०-५ उ.] गौतम! जैसे तैजसशरीर के विषय में कहा है, वैसे यहाँ भी यावत् देशबंधक है, सर्वबंधक नहीं है, यहां तक कहना चाहिए।
१२१. जस्स णं भंते ! ओरालियसरीरस्स देसबंधे से णं भंते ! वेउब्वियसरीरस्स किं बंधए, अबंधए?
गोयमा! नो बंधए, अबंधए।
[१२१ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के औदारिकशरीर का देशबंध है, भगवन् ! क्या वह वैक्रियशरीर का बंधक है या अबंधक है ?
[१२१ उ.] गौतम! बंधक नहीं, अबंधक है। १२२. एवं जहेव सव्वबंधेणं भणियं तहेव देसबंधेणं वि भाणियव्वं जाव कम्मगस्स।
[१२२] जिस प्रकार सर्वबंध के विषय में कथन किया, उसी प्रकार देशबंध के विषय में भी कार्मणशरीर तक कहना चाहिए।
१२३. [१] जस्स णं भंते ! वेउव्वियसरीरस्स सव्वबंधे से णं भंते ! ओरालियसरीरस्स किं