Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
४२२
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र आयुष्यकर्म है, उसके मोहनीयकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं भी होता है।
५२. एवं नामं गोयं अंतराइयं च भाणियव्वं ४। [५२] इसी प्रकार नाम, गोत्र और अन्तराय कर्म के विषय में भी कहना चाहिए। ५३. जस्स णं भंते ! आउयं तस्स नामं० ? पुच्छा। गोयमा ! दो वि परोप्परं नियमं ।।
[५३ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के आयुष्यकर्म होता है, क्या उसके नामकर्म होता है और जिसके नामकर्म होता है, क्या उसके आयुष्यकर्म होता है ?
[५३ उ.] गौतम! ये दोनों कर्म परस्पर नियमतः होते हैं। ५४. एवं गोत्तेण वि समं भाणियव्वं । [५४] (आयुष्यकर्म के विषय में) गोत्रकर्म के साथ भी इसी प्रकार कहना चाहिए। ५५. जस्स णं भंते ! आउयं तस्स अंतराइयं ? पुच्छा।
गोयमा ! जस्स आउयं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सिय नत्थि जस्स पुण अंतराइयं तस्स आउयं नियमा ५।
[५५ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के आयुष्यकर्म होता है, क्या उसके अन्तरायकर्म होता है और जिसके अन्तरायकर्म है, उसके आयुष्यकर्म होता है ?
[५५ उ.] गौतम! जिसके आयुष्यकर्म होता है, उसके अन्तरायकर्म कदाचित् होता है, कदाचित् नहीं होता, किन्तु जिस जीव के अन्तरायकर्म होता है, उसके आयुष्यकर्म अवश्य होता है।
५६. जस्स णं भंते ! नामं तस्स गोयं, जस्स णं गोयं तस्स णं नामं?
गोयमा ! जस्स णं णामं तस्स णं नियमा गोयं, जस्स णं गोयं तस्स णं नियमा नामं–गोयमा ! दो वि एए परोप्परं नियमा। - [५६ प्र.] भगवन् ! जिस जीव के नामकर्म होता है, क्या उसके गोत्रकर्म होता है और जिसके गोत्रकर्म होता है, उसके नामकर्म होता है ?
[५६ उ.] गौतम ! जिसके नामकर्म होता है, उसके गोत्रकर्म अवश्य होता है और जिसके गोत्रकर्म होता है, उसके नामकर्म भी अवश्य होता है, गौतम ! ये दोनों कर्म सहभावी हैं।
५७. जस्स णं भंते ! णामं तस्स अंतराइय० ? पुच्छा।
गोयमा ! जस्स नामं तस्स अंतराइयं सिय अस्थि सिय नत्थि, जस्स पुण अंतराइयं तस्स नामं नियमा अत्थि६।