Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक-३१
४६३ से (धर्मप्रतिपादक वचन सुन कर) यावत् कोई जीव केवलज्ञान-केवलदर्शन प्राप्त करता है और कोई प्राप्त नहीं करता।
हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, ऐसा कह कर गौतमस्वामी यावत् विचरण करते हैं।
_ विवेचन सोच्चा अवधिज्ञानी के लेश्या आदि का निरूपण-सू. ३४ से ४४ तक में तथारूप अवधिज्ञानी के लेश्या, ज्ञान, योग, उपयोग, संहनन, संस्थान, उच्चत्व, आयुष्य, वेद, कषाय, अध्यवसाय उपदेश, प्रव्रज्यादान, सिद्धि, स्थान एवं एक समय में कितनी संख्या आदि के सम्बन्ध में असोच्चा केवली के क्रम से ही प्रतिपादन किया गया है।
असोच्चा से सोच्चा अवधिज्ञानी की कई बातों में अन्तर—(१)लेश्या-असोच्चा अवधिज्ञानी में तीन ही विशुद्ध लेश्याएँ बतायी गई हैं, जबकि सोच्चा अवधिज्ञानी में छह लेश्याएं बताई गई हैं। उसका रहस्य यह है कि यद्यपि तीन प्रशस्त भावलेश्या होने पर ही अवधिज्ञान प्राप्त होता है, तथापि द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से वह सम्यक्त्व श्रुत की तरह छह लेश्याओं में होता है, क्योंकि सोच्चाकेवली का अधिकार होने से मनुष्य ही उसका अधिकारी है। इसलिए उक्त लेश्या वाले द्रव्यों तथा उनकी परिणति की अपेक्षा से छह लेश्याओं का कथन किया गया है। (२)ज्ञान-तेले-तेले की विकट तपस्या करने वाले साधु को अवधिज्ञान उत्पन्न होता है और अवधिज्ञानी में प्रारम्भिक दो ज्ञान (मति-श्रुतज्ञान) अवश्य होने से उसे तीन ज्ञानों में बतलाया गया है। जो मनःपर्यायज्ञानी होता है, उसके अवधिज्ञान उत्पन्न होने पर अवधिज्ञानी चार ज्ञानों से युक्त हो जाता है।(३) वेद-यदि अक्षीणवेदी को अवधिज्ञान की उत्पत्ति हो तो वह सवेदक होता है, उस समय या तो वह स्त्रीवेदी होता है या पुरुषवेदी अथवा पुरुषनपुंसकवेदी होता है और अवेदी को अवधिज्ञान होता है तो वह क्षीणवेदी को होता है, उपशान्तवेदी को नहीं होता, क्योंकि आगे इसी अवधिज्ञानी के केवलज्ञान की उत्पत्ति का कथन विवक्षित है। (४) कषाय-कषायक्षय न होने की स्थिति में अवधिज्ञान प्राप्त होता है तो वह जीव सकषायी होता है और कषायक्षय होने पर अवधिज्ञान होता है तो अकषायी होता है। यदि अक्षीणकषायी अवधिज्ञान प्राप्त करता है तो चारित्रयुक्त होने से चार संज्वलन कषायों में होता है, जब क्षपकश्रेणिवर्ती होने से संज्वलन क्रोध क्षीण हो जाता है, तब अवधिज्ञान प्राप्त होता है, तो संज्वलनमानादि तीन कषाय युक्त होता है, जब क्षपकश्रेणि की दशा में संज्वलन क्रोध-मान क्षीण हो जाता है तो संज्वलन मायालोभ से युक्त होता है और जब तीनों क्षीण हो जाते है तो वह अवधिज्ञानी एकमात्र संज्वलन लोभ से युक्त होता
॥ नवम शतक : इकतीसवाँ उद्देशक समाप्त॥
१. वियाहपण्णत्तिसुत्तं भा. १ (मूलपाठ-टिप्पण), पृ. ४१८-४२० २. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र ४३८