Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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नवम शतक : उद्देशक - ३१
४६१
गोयमा ! असंखेज्जा एवं जहा असोच्चाए (सु. २५-२६) तहेव जाव केवलवरनाण- दंसणे समुप्पज्जइ (सु. २६ ) ।
[३९ प्र.] भंते! उस (तथारूप) अवधिज्ञानी के कितने अध्यवसाय बताए गए हैं ?
[३९ उ.] गौतम ! उसके असंख्यात अध्यवसाय होते हैं। जिस प्रकार (सू. २५, २६ में) असोच्चा केवली के अध्यवसाय के विषय में कहा गया है, उसी प्रकार यहाँ भी 'सोच्चा केवली' के लिए उसे केवलज्ञान— केवलदर्शन उत्पन्न होता है, तक कहना चाहिए।
सोच्चा केवली द्वारा उपदेश, प्रव्रज्या, सिद्धि आदि के सम्बन्ध में.
४०. से णं भंते! केवलिपण्णत्तं धम्मं आघविज्जा वा, पण्णाविज्जा वा, परूविज्जा वा ? हंता, आघविज्ज वा, पण्णवेज्ज वा, परूवेज्ज वा ।
[ ४० प्र.] भंते! वह 'सोच्चा केवली' केवलि-प्ररूपित धर्म कहते हैं, बतलाते हैं या प्ररूपित करते हैं ? [ ४० उ. ] हाँ गौतम ! वे केवलि - प्ररूपित धर्म कहते हैं, बतलाते हैं और उसकी प्ररूपणा भी करते हैं । ४१. [ १ ] से णं भंते ! पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा ?
हंता, गोयमा ! पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा ।
[४१-१ प्र.] भगवन् ! वे सोच्चा केवली किसी को प्रव्रजित करते हैं या मुण्डित करते हैं ?
[४१-१ उ.] हाँ गौतम ! वे प्रव्रजित भी करते हैं, मुण्डित भी करते हैं ।
[ २ ] तस्स णं भंते! सिस्सा वि पव्वावेज्ज वा, मुंडावेज्ज वा ?
हंता, पव्वावेज्ज वा मुंडावेज्ज वा ।
[४१-२ प्र.] भगवन् ! उन सोच्चा केवली के शिष्य किसी को प्रव्रजित करते हैं या मुण्डित करते हैं ?
[४१-२ उ.] हाँ गौतम ! उनके शिष्य भी प्रव्रजित करते हैं और मुण्डित करते हैं।
[ ३ ] तस्स णं भंते ! पसिस्सा वि पव्वावेज्ज वा मुंडावेज्ज वा ?
हंता, पव्वावेज्ज वा मुंडावेज्ज वा ।
[४१-३ प्र.] भगवन्! क्या उन सोच्चा केवली के प्रशिष्य भी किसी को प्रव्रजित और मुण्डित करते
हैं ?
[४१-३ उ.] हाँ गौतम ! उनके प्रशिष्य भी प्रव्रजित करते हैं और मुण्डित करते हैं।
४२ [ १ ] से णं भंते ! सिज्झइ बुज्झइ जाव अंतं करेइ ?
हंता, सिज्झइ जाव अंतं करे ।