Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
दर्शनावरणीय से ६ भंग - (१) दर्शनावरणीय में वेदनीय की नियमा, किन्तु वेदनीय में दर्शनावरणीय की भजना, (२) दर्शनावरणीय में मोहनीय की भजना, किन्तु मोहनीय में दर्शनावरणीय की नियमा, (३) दर्शनावरणीय में आयुष्यकर्म की नियमा, किन्तु आयुष्यकर्म में दर्शनावरणीय की भजना, (४) दर्शनावरणीय में नामकर्म की नियमा किन्तु नामकर्म में दर्शनावरणीय की भजना, (५) दर्शनावरणीय में गोत्रकर्म की नियमा, किन्तु गोत्रकर्म में दर्शनावरणीय की भजना और (६) दर्शनावरणीय में अन्तरायकर्म की नियमा, तथैव अन्तरायकर्म में दर्शनावरणीय की नियमा ।
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वेदनीय से ५ भंग — (१) वेदनीय में मोहनीय की भजना, किन्तु मोहनीय में वेदनीय की नियमा, (२) वेदनीय में आयुष्य की नियमा, तथैव आयुष्यकर्म में वेदनीय की नियमा, (३) वेदनीय में नामकर्म की नियमा, तथैव नामकर्म में वेदनीय की नियमा, (४) वेदनीय में गोत्रकर्म की नियमा, तथैव गोत्रकर्म में वेदनीय की नियमा (५) वेदनीय में अन्तरायकर्म की भजना, किन्तु अन्तरायकर्म में वेदनीय की नियमा ।
मोहनीय से ४ भंग (१) मोहनीय में आयुष्य की नियमा, किन्तु आयुष्यकर्म में मोहनीय की भजना, (२) मोहनीय में नामकर्म की नियमा, किन्तु नामकर्म में मोहनीय की भजना, (३) मोहनीय में गोत्रकर्म की नियमा, किन्तु गोत्रकर्म में मोहनीय की भजना, (४) मोहनीय में अन्तरायकर्म की नियमा, किन्तु अन्तरायकर्म् में मोहनीय की भजना ।
आयुष्यकर्म से ३ भंग (१) आयुष्यकर्म में नामकर्म की नियमा, तथैव नामकर्म में आयुष्यकर्म की नियमा, (२) आयुष्यकर्म में गोत्रकर्म की नियमा तथैव गोत्रकर्म में आयुष्यकर्म की नियमा, (३) आयुष्यकर्म में अन्तरायकर्म की भजना, किन्तु अन्तरायकर्म में आयुष्यकर्म की नियमा ।
नामकर्म से दो भंग (१) नामकर्म में गोत्रकर्म की नियमा तथैव गोत्रकर्म में नामकर्म की नियमा, (२) नामकर्म में अन्तरायकर्म की भजना, किन्तु अन्तराय कर्म में नामकर्म की भजना ।
गोत्रकर्म से एक भंग— (१) गोत्रकर्म में अन्तरायकर्म की भजना, किन्तु अन्तरायकर्म में गोत्रकर्म की नियमा ।
इस प्रकार आठ कर्मों के नियमा और भजना से परस्पर सहभाव के ७+६+५+४+ ३ + २ + १ = २८ भंगों की घटना कर लेनी चाहिए।"
संसारी और सिद्ध जीव के पुद्गली और पुद्गल होने का विचार
५९. [१] जीवे णं भंते! किं पोग्गली, पोग्गले ?
गोयमा ! जीवे पोग्गली वि, पोग्गले वि।
[५९ प्र.] भगवन्! जीव पुद्गली है अथवा पुद्गल है ?
१. भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक ४२४