Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
४१४
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र न बहुत द्रव्यदेश है, एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश भी नहीं, यावत् बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश भी नहीं।
२४. दो भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा किं दव्वं दव्वदेसे० पुच्छा तहेव ?
गोयमा ! सियं दव्वं १, सिय दव्वदेसे २, सिय दव्वाइं ३, सिय दव्वदेसा ४, सिय दव्वं च दव्वदेसे य ५, नो दव्वं च दव्वदेसा य ६, सेसा पडिसेहेयव्वा।
[२४ प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश क्या एक द्रव्य हैं, अथवा एक द्रव्यप्रदेश हैं ? इत्यादि (पूर्वोक्त अष्टविकल्पात्मक) प्रश्न।
[२४ उ.] गौतम! १. कथंचित् द्रव्य हैं, २. कथञ्चित् द्रव्यदेश हैं, ३. कथंचित् बहुत द्रव्य हैं, ४. कथंचित् बहुत द्रव्यदेश हैं और ५. कथंचित् एक द्रव्य और एक द्रव्यदेश हैं, परन्तु ६. एक द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश नहीं, ७. बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश नहीं तथा ८. बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश नहीं हैं। (अर्थात्-प्रथम के ५ भंगों के अतिरिक्त शेष भंगों का निषेध करना चाहिए।)
२५. तिण्णि भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा किं दव्वं० दव्वदेसे० पुच्छा।
गोयमा ! सियं दव्वं १, सिय दव्वदेसे २, एवं सत्त भंगा भाणियव्वा, जाव सिय दव्वाइं च दव्वदेसे य, नो दव्वाइं च दव्वदेसा य।
[२५ प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश क्या एक द्रव्य हैं, अथवा एक द्रव्यदेश हैं ? इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न।
[२५ उ.] गौतम! १. कथञ्चित् एक द्रव्य हैं, २. कथञ्चित् एक द्रव्यदेश हैं, इसी प्रकार यहाँ कथञ्चित् बहुत द्रव्य और एक द्रव्यदेश हैं, तक (पूर्वोक्त) सात भंग कहने चाहिए। किन्तु बहुत द्रव्य और बहुत द्रव्यदेश हैं यह आठवां भंग नहीं कहें।
२६. चत्तारि भंते ! पोग्गलत्थिकायपएसा किं दव्वं० पुच्छा।
गोयमा ! सिय दव्वं १, सिय दव्वदेसे २, अट्ठ वि भंगा भाणियव्वा जाव सिय दव्वाइं च दव्व देसा य ८।
[२६ प्र.] भगवन्! पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश क्या एक द्रव्य हैं या एक द्रव्यदेश हैं ? इत्यादि पूर्वोक्त प्रश्न........।
[२६ उ.] गौतम! कथञ्चित् एक द्रव्य हैं, कथञ्चित् एक द्रव्यदेश हैं, इत्यादि कथञ्चित् बहुत द्रव्य हैं और बहुत द्रव्यदेश हैं, तक आठों भंग यहाँ कहने चाहिए।
२७. जहा चत्तारि भणिया एवं पंच छ सत्त जाव असंखेजा। [२७] इस प्रकार चार प्रदेशों के विषय में कहा, उसी प्रकार पांच, छह, सात यावत् असंख्यप्रदेशों तक