Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-१०
४१७ [३३ उ.] गौतम ! अनन्त अविभाग-परिच्छेद कहे गए हैं। ३४. नेरइयाणं भंते ! णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवतिया अविभागपलिच्छेया पण्णत्ता ? गोयमा ! अणंता अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता। [३४ प्र.] भगवन् ! नैरयिकों के ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभाग-परिच्छेद कहे गए हैं ? [३४ उ.] गौतम ! उनके अनन्त अविभाग-परिच्छेद कहे गए हैं। ३५. एवं सव्वजीवाणं जाव वेमाणियाणं पुच्छा।
गोयमा ! अणंता अविभागपलिच्छेदा पण्णत्ता। __ [३५ प्र.] भगवन्! इसी प्रकार वैमानिकपर्यन्त सभी जीवों के ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभागपरिच्छेद कहे गए हैं ?
[३५ उ.] गौतम! अनन्त अविभाग-परिच्छेद कहे गए हैं।
३६. एवं जहा णाणावरणिज्जस्स अविभागपलिच्छेदा भणिया तहा अट्ठण्ह वि कम्मपगडीणं भाणियव्वा जाव वेमाणियाणं अंतराइयस्स।
[३६] जिस प्रकार (सभी जीवों के) ज्ञानावरणीयकर्म के (अनन्त) अविभाग-परिच्छेद कहे हैं, उसी प्रकार वैमानिक-पर्यन्त सभी जीवों के अन्तराय कर्म तक आठों कर्मप्रकृतियों के (प्रत्येक के अनन्त-अनन्त) अविभाग-परिच्छेद कहने चाहिए।
३७. एगमेगस्स णं भंते ! जीवस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवइएहिं अविभागपलिच्छेदेहिं आवेढियपरिवेढिए सिया ? ___ गोयमा ! सिय आवेढियपरिवेढिए, सिय नो आवेढियपरिवेढिए।जइ आवेढियपरिवेढिए नियमा अणंतेहिं। __ [३७ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक जीव का प्रत्येक जीवप्रदेश ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभाग परिच्छेदों से आवेष्टित-परिवेष्टित है?
[३७ उ.] हे गौतम! वह कदाचित् आवेष्टित-परिवेष्टित होता है, कदाचित् आवेष्टित-परिवेष्टित नहीं होता। यदि आवेष्टित-परिवेष्टित होता है तो वह नियमतः अनन्त अविभाग-परिच्छेदों से होता है।
३८. एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स एगमेगे जीवपएसे णाणावरणिज्जस्स कम्मस्स केवइएहिं अविभागपलिच्छेदेहिं आवेढियपरिवेढिते ?
गोयमा ! नियमा अणंतेहिं। [३८ प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव का प्रत्येक जीवप्रदेश ज्ञानावरणीयकर्म के कितने अविभाग