Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
४१२
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र औपशमिक सम्यक्त्व और जघन्य दर्शनाराधना में जघन्य क्षायोपशमिक सम्यक्त्व पाया जाता है। उत्कृष्ट चारित्राराधना में यथाख्यात चारित्र, मध्यम चारित्राराधना में सूक्ष्मम्पराय और परिहारविशुद्धि चारित्र तथा जघन्य चारित्राराधना में सामायिकचारित्र और छेदोपस्थापनिक चारित्र पाया जाता है।
आराधना के पूर्वोक्त प्रकारों का परस्पर सम्बन्ध–उत्कृष्ट ज्ञानाराधक में उत्कृष्ट और मध्यम दर्शनाराधना होती है, किन्तु जघन्य दर्शनाराधना नहीं होती, क्योंकि उसका वैसा ही स्वभाव है। उत्कृष्ट दर्शनाराधक में ज्ञान के प्रति तीनों प्रकार का प्रयत्न सम्भव है, अत: पूर्वोक्त तीनों प्रकार की ज्ञानाराधना भजना से होती है। जिसमें उत्कृष्ट ज्ञानाराधना होती है, उसमें चारित्राराधना उत्कृष्ट या मध्यम होती है, क्योंकि उत्कृष्ट ज्ञानाराधक में चारित्र के प्रति तीनों प्रकार का प्रयत्न भजना से होता है। जिसकी उत्कृष्ट दर्शनाराधना होती है, उसमें तीनों प्रकार की चारित्राराधना भजना से होती है, क्योंकि उत्कृष्ट दर्शनाराधक में चारित्र के प्रति तीनों प्रकार का प्रयत्न अविरुद्ध है। जहाँ उत्कृष्ट चारित्राराधना होती है, वहाँ उत्कृष्ट दर्शनाराधना अवश्य होती है, क्योंकि उत्कृष्ट चारित्र उत्कष्ट दर्शनानगामी होता है।
__रत्नत्रय की त्रिविध आराधनाओं का उत्कृष्ट फल उत्कृष्ट ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना वाले कतिपय साधक उसी भव में तथा कतिपय दो (बीच में एक देव और एक मनुष्य का) भव ग्रहण करके मोक्ष जाते हैं। कई जीव कल्पोपपन्न या कल्पातीत देवलोकों में विशेषतः उत्कष्ट चारित्राराधना वाले एकमात्र कल्पातीत देवलोकों में उत्पन्न होते हैं। मध्यम ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना वाले कई जीव जघन्य दो भव ग्रहण करके उत्कृष्ट तीसरे भव में (बीच में दो भव देवों के करके) अवश्य मोक्ष जाते हैं। इसी तरह . जघन्यत: ज्ञान, दर्शन और चारित्र की आराधना करने वाले कतिपय जीव जघन्य तीसरे भव में, उत्कृष्टतः सात या आठ भवों में अवश्यमेव मोक्ष जाते हैं। ये सात भव देवसम्बन्धी और आठ भव चारित्रसम्बन्धी, मनुष्य के समझने चाहिए। पुद्गल-परिणाम के भेद प्रभेदों का निरूपण
१९. कतिविहे णं भंते ! पोग्गलपरिणामे पण्णत्त ?
गोयमा ! पंचविहे पोग्गलपरिणाणे पण्णत्ते, तं जहा—वण्णपरिणामे १ गंधपरिणामे २ रसपरिणामे ३ फासपरिणामे ४ संठाणपरिणामे ५।
[१९ प्र.] भगवन् ! पुद्गलपरिणाम कितने प्रकार का कहा गया है ? । [१९ उ.] गौतम! पुद्गलपरिणाम पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—(१) वर्णपरिणाम, (२) गन्धपरिणाम, (३) रसपरिणाम, (४) स्पर्शपरिणाम और (५) संस्थानपरिणाम।
२०. वण्णपरिणामे णं भंते ! कइविहे पण्णत्ते ?
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ४१९-४२०