Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
४०४
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र , प्रस्तुत सूत्र में पांचों शरीरों के बंधकों, अबंधकों में जो जिससे अल्प, अधिक, तुल्य अथवा विशेषाधिक हैं, उनकी प्ररूपणा की गई है।
__ अल्पबहुत्व का कारण-(१) आहारकशरीर चौदहपूर्वधर मुनि के ही होता है, वे भी विशेष प्रयोजन होने पर ही आहारकशरीर धारण करते हैं। फिर सर्वबंध का काल भी सिर्फ एक समय का है, अतएव आहारकशरीर के सर्वबंधक सबसे अल्प हैं। (२) उनसे आहारकशरीर के देशबंधक संख्यातगुणे हैं, क्योंकि देशबंधक का काल अन्तर्मुहूर्त है। (३) उनसे वैक्रियशरीर के सर्वबंधक असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि आहारकशरीरधारी जीवों से वैक्रियशरीरी असंख्यातगुणे अधिक हैं। (४) उनसे वैक्रियशरीरधारी देशबंधक जीव असंख्यातगुणे अधिक हैं, क्योंकि सर्वबंधक से देशबंधक का काल असंख्यातगुणा है। अथवा प्रतिपद्यमान सर्वबंधक होते हैं और पूर्वप्रतिपन्न देशबंधक, अतः प्रतिपद्यमान की अपेक्षा पूर्वप्रतिपन्न असंख्यातगुणे हैं। (५) उनसे तैजस और कार्मणशरीर के अबंधक अनन्तगुणे हैं, क्योंकि इन दोनों शरीरों के अबंधक सिद्ध भगवान् हैं, जो वनस्पतिकायिक जीवों के सिवाय शेष सर्व संसारी जीवों से अनन्तगुणे हैं। (६) उनसे औदारिकशरीर के सर्वबंधक जीव अनन्तगुणे हैं, क्योंकि वनस्पति कायिक जीव भी औदारिकशरीरधारियों में हैं, जो कि अनन्त हैं। (७) उनसे औदारिकशरीर के अबंधक जीव इसलिए विशेषाधिक हैं, कि विग्रहगतिसमापनक जीव तथा सिद्ध जीव सर्वबंधकों से बहुत हैं। (८) उनसे औदारिकशरीर के देशबंधकं असंख्यातगुणे हैं, क्योंकि विग्रहगति के काल की अपेक्षा देशबंधक का काल असंख्यातगुणा है। (९) उनसे तैजस-कार्मणशरीर के देशबंधक विशेषाधिक हैं, क्योंकि सारे संसारी जीव तैजस और कार्मण शरीर के देशबंधक होते हैं। इनमें विग्रहगतिसमापन्नक औदारिक-सर्वबंधक और वैक्रियादि-बंधक जीव भी आ जाते हैं। अत: औदारिकदेशबंधकों से ये विशेषाधिक बताए गए हैं। (१०) उनसे वैक्रियशरीर के अबंधक जीव विशेषाधिक हैं, क्योंकि वैक्रियशरीर के बंधक प्रायः देव और नारक हैं। शेष सभी संसारी जीव और सिद्ध भगवान् वैक्रिय के अबंधक ही हैं, इस अपेक्षा से वे तैजसादि देशबंधकों से विशेषाधिक बताए गए हैं। (११) उनसे आहारकशरीर के अबंधक विशेषाधिक हैं, क्योंकि वैक्रिय तो देव-नारकों के भी होता है, किन्तु आहारकशरीर सिर्फ चतुर्दशपूर्वधर मुनियों के होता है। इस अपेक्षा से आहारकशरीर के अबंधक विशेषाधिक कहे गए हैं।'
॥अष्टम शतक : नवम उद्देशक समाप्त।
१. भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक ४१४