Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
३९१
अष्टम शतक : उद्देशक-९ नामकर्म के उदय से तैजसशरीरप्रयोगबंध होता है।
९३. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कि देसबंधे सव्वबंधे ? गोयमा ! देसबंधे, नो सव्वबंधे। [९३ प्र.] भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध क्या देशबंध होता है, अथवा सर्वबंध होता है ? [९३ उ.] गौतम! देशबंध होता है, सर्वबंध नहीं होता। ९४. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कालओ केवचिरं होइ ? गोयमा! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—अणाईए वा अपज्जवसिए, अणाईए वा सपज्जवसिए। [९४ प्र.] भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध कालतः कितने काल तक रहता है ?
[९४ उ.] गौतम! तैजसशरीरप्रयोगबंध (कालतः) दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—(१) अनादि-अपर्यवसित और (२) अनादि-सपर्यवसित। . ९५. तेयासरीरप्पयोगबंधंतरं णं भंते ! कालओ केवच्चिरं होइ ? गोयमा! अणाइयस्स अपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं, अणाईयस्स सपज्जवसियस्स नत्थि अंतरं। [९५ प्र.] भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कालतः कितने काल का होता है ? । [९५ उ.] गौतम! (इनके कालतः दो प्रकारों में से) न तो अनादि-अपर्यवसित (तैजसशरीरप्रयोगबंध) का अन्तर है और न ही अनादि-सपर्यवसित (तैजसशरीरप्रयोगबंध) का अन्तर है।
९६. एएसि णं भंते ! जीवाणं तेयासरीरस्स देसबंधगाणं अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा?
गोयमा ! सव्वत्थोवा जीवा तेयासरीरस्स अबंधगा, देसबंधगा अणंतगुणा।
[९६ प्र.] भगवन् ! तैजसशरीर के इन देशबंधक और अबंधक जीवों में कौन, किससे यावत् (कम, बहुत, तुल्य) अथवा विशेषाधिक हैं ?
[९६ उ.] गौतम! तैजसशरीर के अबंधक जीव सबसे थोड़े हैं, उनसे देशबंधक जीव अनन्तगुणे हैं।
विवेचन-तैजसशरीरप्रयोगबंध के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं से विचरणा–प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. ९० से ९६ तक) में पूर्ववत् विभिन्न पहलुओं से तैजसशरीरप्रयोगबंध से सम्बन्धित विचारणा की गई है।
तैजसशरीरप्रयोगबंध का स्वरूप-तैजसशरीर अनादि है, इसलिये इसका सर्वबंध नहीं होता। तैजसशरीरप्रयोगबंध अभव्य जीवों के अनादि-अपर्यवसित (अन्तरहित) होता है, जबकि भव्य जीवों के अनादि-सपर्यवसित (सान्त) होता है। तैजसशरीर सर्वसंसारी जीवों के सदैव रहता है, इसलिए तैजसशरीरप्रयोगबंध