Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र इस कारण आहारकशरीर के देशबंधक भी असंख्यातगुणे नहीं हो सकते। उनसे अबंधक अनन्तगुणे इसलिए बताए हैं कि आहारकशरीर केवल मनुष्यों के, उनमें भी किन्हीं संयतजीवों के और उनके भी कदाचित् ही होता है, सर्वदा नहीं। शेष काल में वे जीव (स्वयं) तथा सिद्ध जीव तथा वनस्पतिकायिक आदि शेष सभी मनुष्येत्तर जीव आहारक शरीर के अबंधक होते हैं और वे उनसे अनन्तगुणे हैं।' तैजसशरीरप्रयोगबंध के सम्बन्ध में विभिन्न पहलओं से निरूपण
९०. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते, तं जहा—एगिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे, बेइंदिय०, तेइंदिय०, जाव पंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे।
[९० प्र.] भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[९० उ.] गौतम! वह पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—एकेन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबंध, द्वीन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबंध, त्रीन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबंध, यावत् (चतुरिन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबंध और) पंचेन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबंध।
९१. एगिदियतेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
एवं एएणं अभिलावेणं भेदो जहाओगाहणसंठाणे जाव पज्जत्तसव्वट्ठ सिद्धअणुत्तरोववाइयकप्पातीयवेमाणियदेवपंचिंदियतेयासरीरप्पयोगबंधे य अपज्जत्तसव्वट्ठसिद्धअणुत्तरोववाइय० जाव बंधे
य।
___ [९१ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-तैजसशरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[९१ उ.] गौतम! इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा जैसे—(प्रज्ञापनासूत्र के इक्कीसवें) अवगाहनासंस्थानपद में भेद कहे हैं, वैसे यहाँ भी पर्याप्त-सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिककल्पातीतवैमानिकदेव-पंचेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबंध और अपर्याप्त-सर्वार्थसिद्धअनुत्तरौपपातिक-कल्पातीत-वैमानिकदेव-पंचेन्द्रियतैजसशरीरप्रयोगबंध तक कहना चाहिए।
९२. तेयासरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा! वीरियसजोगसहव्वयाए जाव आउयं वा पडुच्च तेयासरीरप्पयोगनामाए कम्मस्स उदएणं तेयासरीरप्पयोगबंधे।
[९२ प्र.] भगवन् ! तैजसशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? [९२ उ.] गौतम! सवीर्यता, सयोगता और सद्व्यता, यावत् आयुष्य के निमित्त से तथा तैजसशरीरप्रयोग
१. भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक ४०९