Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [५५-२] इसी प्रकार अधःसप्तम नरकपृथ्वी तक कहना चाहिए। ५६.तिरिक्खजोणियपंचिंदियवेउब्वियसरीर• पुच्छा। गोयमा ! वीरिय० जहा वाउक्काइयाणं। [५६ प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक-(पंचेन्द्रिय) वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ?
[५६ उ.] गौतम! सवीर्यता यावत् आयुष्य और लब्धि को लेकर तथा तिर्यंचयोनिक-पंचेन्द्रियवैक्रियशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से वह होता है।
५७. मणुस्सपंचिंदियवेउव्वियं ? एवं चेव। [५७ प्र.] भगवन् ! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ?
[५७ उ.] गौतम! मनुष्य-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध के विषय में भी इसी प्रकार (पूर्ववत्) जान लेना चाहिए।
५८.[१] असुरकुमारभवणवासिदेवपंचिंदियवेउब्बिय.? जहा रयणप्पभापुढविनेरइया।
[५८-१ प्र.] भगवन् ! असुरकुमार-भवनवासीदेव-पंचेन्द्रिय-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ?
[५८-१ उ.] गौतम! इसका कथन भी रत्नप्रभापृथ्वीनैरयिकों की तरह समझना चाहिए । [२] एवं जाव थणियकुमारा। [५८-२] इसी प्रकार स्तनितकुमार भवनवासीदेवों तक कहना चाहिए। ५९. एवं वाणमंतरा। [५९] इसी प्रकार वाणव्यन्तर देवों के विषय में भी रत्नप्रभापृथ्वी नैरयिकों के समान जानना चाहिए। ६०. एवं जोइसिया। [६०] इसी प्रकार ज्योतिष्कदेवों के विषय में जानना चाहिए। ६१.[१] एवं सोहम्मकप्पोवगया वेमाणिया। एवं जाव अच्चुयः।
[६१-१] इसी प्रकार (रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों के समान सौधर्मकल्पोपपन्नक-वैमानिकदेवों से अच्युतकल्पोपन्नक-वैमानिकदेवों तक के विषय में जानना चाहिए।
[२] गेवेन्जकप्पातीया वेमाणिया एवं चेव।