Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-९
३८५ उत्कृष्ट अनन्तकाल-वनस्पतिकाल का होता है। देशबंध के अन्तर का काल जघन्य वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्ट अनंतकाल-वनस्पतिकाल का होता है। इसी प्रकार अच्युत देवलोक तक के वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर जानना चाहिए। विशेष इतना ही है कि जिसकी जितनी जघन्य (आयु-) स्थिति हो, सर्वबंधान्तर में उससे वर्षपृथक्त्व-अधिक समझना चाहिए। शेष सारा कथन पूर्ववत् जान लेना चाहिए।
८०. गेवेज्जकप्पातीय. पुच्छा।
गोयमा ! सव्वबंधंतरं जहन्नेणं बावीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं अणंतं कालं, वणस्सइकालो। देशबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं वणस्सइकालो।
[८० प्र.] भगवन् ! ग्रैवेयककल्पातीत-वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अन्तर कितने काल का होता है ?
[८० उ.] गौतम! सर्वबंध का अन्तर जघन्यत: वर्षपृथक्त्व-अधिक २२ सागरोपम का है और उत्कृष्टतः अनन्तकाल-वनस्पतिकाल का होता है। देशबंध का अन्तर जघन्यत: वर्षपृथक्त्व और उत्कृष्टत: वनस्पतिकाल का होता है।
८१. जीवस्स णं भंते ! अणुत्तरोववातिय, पुच्छा।
गोयमा! सव्वबंधंतरंजहन्नेणं एक्कतीसं सागरोवमाइं वासपुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं संखेज्जाइं सागरोवमाइं। देशबंधंतरं जहन्नेणं वासपुहत्तं, उक्कोसेणं संखेज्जाइं सागरोवमाइं।
[८१ प्र.] भगवन् ! कोई अनुत्तरौपपातिकदेवरूप में रहा हुआ जीव वहाँ से च्यव कर अनुत्तरौपपातिकदेवों के अतिरिक्त, किन्हीं अन्य स्थानों में उत्पन्न हो और वहाँ से मरकर पुनः अनुत्तरौपपातिकदेवरूप में उत्पन्न हो, तो उसके वैक्रियशरीरप्रयोगबंध का अंतर कितने काल का होता है।
[८१.उ.] गौतम ! उसके सर्वबंध का अंतर जघन्यत: वर्षपृथक्त्व-अधिक इकतीस सागरोपम का और उत्कृष्टत: संख्यात सागरोपम का होता है। उसके देशबंध का अंतर जघन्यतः वर्षपृथक्त्व का और उत्कृष्टतः संख्यात सागरोपम का होता है।
८२. एएसि णं भंते ! जीवाणं वेउव्वियसरीरस्स देसबंधगाणं सव्वबंधगाणं, अबंधगाण य कयरे कयरेहिंतो जाव विसेसाहिया वा?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा वेउब्वियसरीरस्स सव्वबंधगा, देसबंधगा असंखेज्जगुणा, अबंधगा अणंतगुणा।
[८२ प्र.] भगवन् ! वैक्रियशरीर के इन देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे यावत् विशेषाधिक हैं ?
[८२ उ.] गौतम! सबसे थोड़े वैक्रियशरीर के सर्वबंधक जीव हैं, उनसे देशबंधक जीव असंख्यातगुणे हैं और उनसे अबंधक जीव अनन्तगुणे हैं।