Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक - ९
करे करेहिंतो जाव विसेसाहिया वा ?
गोयमा! सव्वत्थोवा जीवा ओरालियसरीरस्स सव्वबंधगा अबंधगा विसेसाहिया, देसबंधगा असंखेज्जगुणा ।
[५० प्र.] भगवन्! औदारिक शरीर के इन देशबंधक सर्वबंधक और अबंधक जीवों में कौन किनसे अल्प यावत् विशेषाधिक हैं ?
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[५० उ. ] गौतम ! सबसे थोड़े (अल्प) औदारिकशरीर के सर्वबंधक जीव हैं उनसे अबंधक जीव विशेषाधिक हैं और उनसे देशबंधक जीव असंख्यात गुणे हैं।
विवेचन — शरीरप्रयोगबन्ध के प्रकार एवं औदारिकशरीरप्रयोगबन्ध के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं से निरूपण – प्रस्तुत २७ सूत्रों (सू. २४ से ५० तक) में शरीरप्रयोगबंध के विषय में निम्नोक्त तथ्यों का निरूपण किया गया है—
१. औदारिक आदि के भेद से शरीरप्रयोगबंध पांच प्रकार का है।
. २. एकेन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय तक औदारिकशरीरप्रयोगबंध पांच प्रकार का है।
३. एकेन्द्रिय-औदारिकशरीरप्रयोगबंध पृथ्वीकाय से लेकर वनस्पतिकाय तक पांच प्रकार का है। ४. द्वीन्द्रिय से लेकर पंचेन्द्रिय पर्याप्त, अपर्याप्त गर्भज मनुष्य तक औदारिकशरीरप्रयोगबंध समझना चाहिए ।
५. समस्त जीवों के औदारिकशरीरप्रयोगबंध वीर्य, योग, सद्द्द्रव्य एवं प्रमाद के कारण कर्म, योग, भव और आयुष्य की अपेक्षा औदारिकंशरीरप्रयोगनामकर्म के उदय से होता है ।
६. समस्त जीवों के औदारिकशरीरप्रयोगबंध देशबंध भी है, सर्वबंध ।
७. समस्त जीवों के औदारिकशरीरप्रयोगबंध की कालतः स्थिति की सीमा ।
८. समस्त जीवों के सर्व- देशबंध की अपेक्षा कालतः औदारिकशरीरबंध के अन्तरकाल की सीमा ।
९. समस्त जीवों द्वारा अपने एकेन्द्रियादि पूर्वरूप को छोड़कर अन्य रूपों में उत्पन्न हो या रह कर, पुनः उसी अवस्था (रूप) में आने पर औदारिकशरीर-प्रयोगबंधान्तरकाल की सीमा ।
१०. औदारिकशरीर के देशबंधक, सर्वबंधक और अबंधक जीवों का अल्पबहुत्व ।
औदारिकशरीर-प्रयोगबंध के आठ कारण — जिस प्रकार प्रासादनिर्माण में द्रव्य, वीर्य, संयोग, योग (मन-वचन-काया का व्यापार), शुभकर्म ( का उदय), आयुष्य, भव ( तिर्यच - मनुष्यभव) और काल (तृतीयचतुर्थ - पंचम आरा), इन कारणों की अपेक्षा होती है, उसी प्रकार औदारिकशरीरबंध में भी निम्नोक्त ८ कारण अपेक्षित हैं- ( १ ) सवीर्यता — वीर्यान्तरायकर्म के क्षयोपशम से उत्पन्न शक्ति, (२) सयोगता — योगयुक्तता, (३) सद्द्रव्यता — जीव के तथारूप औदारिकशरीरयोग्य तथाविध पुद्गलों - (द्रव्यों) की विद्यमानता ( ४ ) प्रमाद — शरीरोत्पत्तियोग्य विषय - कषायादि प्रमाद (५) कर्म - तिर्यञ्चमनुष्यादि जातिनामकर्म, (६) योग—