Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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वर्णन किया है।
व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
प्रयोगबंध—स्वरूप और जीवों की दृष्टि से प्रकार — जीव के व्यापार से जो बंध होता है, वह प्रयोगबंध कहलाता है। प्रयोगबंध के तीन विकल्प हैं— ( १ ) अनादि - अपर्यवसित—- जीव के असंख्यात प्रदेशों में से मध्य के आठ (रुचक) प्रदेशों का बंध अनादि- अपर्यवसित है। जब केवली समुद्घात करते हैं, तब उनके प्रदेश समग्रलोकव्यापी हो जाते हैं, उस समय भी वे आठ प्रदेश तो अपनी स्थिति में ही रहते हैं । उसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं होता। उनकी स्थापना इस प्रकार है- नीचे ये चार प्रदेश हैं, और इनके ऊपर चार प्रदेश हैं । इस प्रकार समुदायरूप से ८ प्रदेशों का बंध है। पूर्वोक्त ८ प्रदेशों में भी प्रत्येक प्रदेश का अपने पास रहे हुए दो प्रदेशों के साथ तथा ऊपर या नीचे रहे हुए एक प्रदेश के साथ, इस प्रकार तीन-तीन प्रदेशों के साथ भी अनादि अपर्यवसित बंध है। शेष सभी प्रदेशों का सयोगी अवस्था तक सादि-सपर्यवसित नामक तीसरा विकल्प है तथा सिद्ध जीवों के प्रदेशों का सादि-अपर्यवसित बंध है। प्रस्तुत चार भंगों (विकल्पों) में दूसरे भंग (अनादि-सपर्यवसित) में बंध नहीं होता ।
सादि - सपर्यवसित बंध के चार भेद हैं । (१) आलापनबंध – (रस्सी आदि से घास आदि को बांधना), ( २ ) आलीनबंध— (लाख आदि एक श्लेष्य पदार्थ का दूसरे पदार्थ के साथ बंध होना), (३) शरीरबंध ( समुद्घात करते समय विस्तारित और संकोचित जीव- प्रदेशों के सम्बन्ध से तैजसादि शरीर प्रदेशों का सम्बन्ध होना), (४) शरीरप्रयोगबंध - ( औदारिकादि शरीर की प्रवृत्ति से शरीर के पुद्गलों को ग्रहण करने रूप बंध) इसके पश्चात् आलीनबंध के श्लेषणादिबंध के रूप में ४ भेद तथा उनका स्वरूप मूलपाठ में बतला दिया गाय है।
संहननबंध : दो रूप विभिन्न पदार्थों के मिलने से एक आकार का पदार्थ बन जाना, संहननबंध है। पहिया, जूआ आदि विभिन्न अवयव मिलकर जैसे गाड़ी का रूप धारण कर लेते हैं वैसे ही किसी वस्तु के एक अंश के साथ, किसी अन्य वस्तु का अंश रूप से सम्बन्ध होना- जुड़ जाना देशसंहननबंध है और दूध-पानी की तरह एकमेक हो जाना, सर्वसंहननबंध है ।
शरीरबंध : दो भेद - वेदना, कषाय आदि समुद्घातरूप जीवव्यापार से होने वाला जीव प्रदेशों का बंध, अथवा जीवप्रदेशाश्रित तैजस- कार्मणशरीर का बंध पूर्वप्रयोग-प्रत्ययिक- शरीरबंध है, तथा वर्तमानकाल में केवलीसमुद्घात रूप जीवव्यापार से होने वाला तैजस - कार्मणशरीर का बंध, प्रत्युत्पन्नप्रयोग-प्रत्ययिकशरीरबंध है ।
शरीरप्रयोगबंध के प्रकार एवं औदारिकशरीरप्रयोगबंध के सम्बन्ध में विभिन्न पहलुओं से निरूपण २४. से किं तं सरीरपयोगबंधे ?
सरीरप्पयोगबंधे पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा — ओरालियसरीरप्पओगबंधे वेउव्वियसरीरप्पओगबंधे १. भगवतीसूत्र. अ. वृत्ति, पत्रांक ३९४