Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-९
३६९ आहारगसरीरप्पओगबंधे तेयासरीरप्पयोगबंधे कम्मासरीरप्पयोगबंधे।
[२४ प्र.] भगवन् ! शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[२४ उ.] गौतम! शरीरप्रयोगबंध पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार-(१) औदारिकशरीरप्रयोगबंध, (२) वैक्रियशरीरप्रयोगबंध, (३) आहारकशरीरप्रयोगबंध, (४) तैजसशरीरप्रयोगबंध और (५) कार्मणशरीरप्रयोगबंध।
२५. ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा—एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे बेइंदियओरालिय सरीरप्पयोगबंधे जाव पंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे।
[२५ प्र.] भगवन् ! औदारिक-शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[२५ उ.] गौतम! वह पांच प्रकार का कहा गया है, यथा—(१) एकेन्द्रिय-औदारिक-शरीरप्रयोगबंध (२) द्वीन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध, यावत् (३) त्रीन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध, (४) चतुरिन्द्रियऔदारिकशरीर-प्रयोगबंध और (५) पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध।
२६. एगिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा! पंचविहे पण्णत्ते,तं जहा—पुढविक्काइयएगिदियओरालियसरीरप्पयोगबंधं, एवं एएणं अभिलावेणं भेदा जहा ओगाहणसंठाणे औरालियसरीरस्स तहा भाणियव्वा जाव पन्जत्तगब्भ , वक्कंतिय-मणुस्सपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधेय अपज्जत्तगब्भवक्कंतियमणूसपंचिंदियओरालियसरीरप्पयोगबंधे य।
[२६ प्र.] भगवन् ! एकेन्द्रिय-औदारिक-शरीरप्रयोगबंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[२६ उ.] गौतम! एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध पांच प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार पृथ्वीकायिक-एकेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध इत्यादि । इस प्रकार इस अभिलाप द्वारा जैसे प्रज्ञापनासूत्र के (इक्कीसवें) 'अवगाहना-संस्थान-पद' में औदारिकशरीर के भेद कहे गए हैं, वैसे यहां भी पर्याप्तगर्भज-मनुष्य-पञ्चेन्द्रिय-औदारिकशरीर-प्रयोगबंध और अपर्याप्त गर्भज-मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरप्रयोगबंध तक कहना चाहिए।
२७. ओरालियसरीरप्पयोगबंधे णं भंते ! कस्स कम्मस्स उदएणं?
गोयमा ! वीरियसजोगसद्दव्वयाए पमादच्चया कम्मं च जोगं च भवं च आउयं च पडुच्च ओरालियसरीरप्पयोगनामकम्मस्स उदएणं ओरालियसरीरप्पयोगबंधे ।
[२७ प्र.] भगवन्! औदारिकशरीर-प्रयोगबंध किस कर्म के उदय से होता है ? [२७ उ.] गौतम! सवीर्यता, सयोगता और सद्व्य ता से, प्रमाद के कारण, कर्म, योग, भव और आयुष्य