Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-६
३२३ जलती है।
विवेचन-जलते हुए दीपक और घर में जलने वाली वस्तु का विश्लेषण प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. १२-१३) में दीपक और घर का उदाहरण दे कर इनमें वास्तविक रूप में जलने वाली वस्तु-दीपशिखा और अग्नि बताई गई है।
अगार का विशेषार्थ—अगार से यहाँ घर ऐसा समझना चाहिए-जो कुटी या झौंपड़ीनुमा हो। एक जीव या बहुत जीवों का परकीय (एक या बहुत-से शरीरों की अपेक्षा होने वाली) क्रियाओं का निरूपण
१४. जीवे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय, पंचकिरिए, सिय अकिरिए।
[१४ प्र.] भगवन् ! एक जीव (स्वकीय औदारिकशरीर से, परकीय) एक औदारिक शरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ?
[१४ उ.] गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला, कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है और कदाचित् अक्रिय भी होता है।
१५. नेरइए णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ? गोयमा ! सिय तिकिरिए, सिय चउकिरिए, सिय पंचकिरिए।
[१५ प्र.] भगवन् ! एक नैरयिक जीव, दूसरे के एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ?
[१५ उ.] गौतम ! वह कदाचित् तीन क्रिया वाला, कदाचित् चार क्रिया वाला और कदाचित् पांच क्रिया वाला होता है।
१६. असुरकुमारे णं भंते ! ओरालियसरीराओ कतिकिरिए ? एवं चेव।
[१६ प्र.] भगवन् ! एक असुरकुमार, (दूसरे के) एक औदारिकशरीर की अपेक्षा कितनी क्रिया वाला होता है ?
[१६ उ.] गौतम ! पहले कहे अनुसार (कदाचित् तीन, कदाचित् चार और कदाचित् पांच क्रियाओं वाला) होता है।
१७. एवं जाव वेमाणिय, नवरं मणुस्से जहा जीवे (सु. १४)
[१७] इसी प्रकार वैमानिक देवों तक कहना चाहिए। परन्तु मनुष्य का कथन औधिक जीव की तरह जानना चाहिए।
१८. जीवे णं भंते ! ओरालियसरीरेहितो कतिकिरिए ?