Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
नवमो उद्देसओ : 'बंध'
नवम उद्देशक : ‘बंध' बंध के दो प्रकार : प्रयोगबंध और विस्त्रसाबंध
१. कइविहे णं भंते ! बंधे पण्णत्तो?. गोयमा ! दुविहे बंधे पण्णत्ते, तं जहा—पयोगबंधे य वीससाबंधे य। [१ प्र.] भगवन् ! बंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[१ उ.] गौतम! बंध दो प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—(१) प्रयोगबंध और (२) विस्रसाबंध।
विवेचन—बन्ध के दो प्रकार : प्रयोगबंध और विस्त्रसाबंध-प्रयोगबंध जो जीव के प्रयोग से अर्थात् मन, वचन और काय योगों की प्रवृत्ति से बंधता है। विस्रसाबंध–जो स्वाभाविक रूप से बंधता है। बंध का अर्थ यहाँ पुद्गलादिविषयक सम्बन्ध है।' विस्त्रसाबंध के भेद-प्रभेद और स्वरूप
२. वीससाबंधे णं भंते ! कतिविहे पण्णत्ते ? गोयमा ! दुविहे पण्णत्ते, तं जहा—साईयवीससाबंधे य अणाईयवीससाबंधे य। [२ प्र.] भगवन् ! विस्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[२ उ.] गौतम! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा (१) सादिक विस्रसाबंध और (२) अनादिक विस्रसाबंध।
३. अणाईयवीससाबंधे णं भंते। कतिविहे पण्णत्ते ?
गोयमा ! तिविहे पण्णत्ते, तं जहा-धम्मत्थिकायअन्नमन्नअणादीयवीससाबंधे, अधम्मत्थिकायअन्नमन्नअणादीयवीससाबंधे, आगासत्थिकायअन्नमनअणादीयवीससाबंधे।
[३ प्र.] भगवन् ! अनादिक-विस्रसाबंध कितने प्रकार का कहा गया है ?
[३ उ.] गौतम! वह तीन प्रकार का कहा गया है, वह इस प्रकार—(१) धर्मास्तिकाय का अन्योन्यअनादिक-विस्रसाबंध, (२) अधर्मास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विस्रसाबंध और (३) आकाशास्तिकाय का अन्योन्य-अनादिक-विस्रसाबंध। १. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ३९४