Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-८
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बंधइ बंधिस्सइ; एवं जाव अत्थेगतिए न बंधी बंधइ बंधिस्सइ । णो चेव णं न बंधी बंधइ न बंधिस्सइ । अत्थेगतिए न बंधी न बंधइ बंधिस्सइ । अत्थेगतिए न बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ ।
[१४ प्र.] भगवन् ! क्या जीव ने (ऐर्यापथिक कर्म) १ – बांधा है, बांधता है और बांधेगा; अथवा २ – बांधा है, बांधता है, नहीं बांधेगा; या ३ – बांधा है, नहीं बांधता है, बांधेगा; अथवा ४ – बांधा है, नहीं _ बांधता है, नहीं बांधेगा, या ५ – नहीं बांधा, बांधता है, बांधेगा, अथवा ६ – नहीं बांधा, बांधता है नहीं बांधेगा, या ७– नहीं बांधा, नहीं बांधता, बांधेगा; अथवा ८ – न बांधा, न बांधता है, न बांधेगा ?
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[१४ उ.] गौतम ! भवाकर्ष की अपेक्षा किसी एक जीव ने बांधा है, बांधता है और बांधेगा; किसी एक जीव ने बांधा है, बांधता है, और नहीं बांधेगा; यावत् किसी एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है, नहीं बांधेगा। इस प्रकार (प्रश्न में कथित ) सभी (आठों) भंग यहाँ कहने चाहिए। ग्रहणाकर्ष की अपेक्षा (१) किसी एक जीव ने बांधा, बांधता है, बांधेगा; (२) किसी एक जीव ने बांधा, बांधता है, नहीं बांधेगा; (३) बांधा, नहीं बांधता है, बांधेगा; (४) बांधा, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा; (५) किसी एक जीव ने नहीं बांधा, बांधता है, यहाँ तक (यावत्) कहना चाहिए। इसके पश्चात् छठा भंग नहीं बांधा, बांधता नहीं है, बांधेगा; नहीं कहना चाहिए। (तदनन्तर सातवाँ भंग ) — किसी एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है, बांधेगा, और आठवाँ भंग एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा ( कहना चाहिए)।
१५. तं भंते! किं साईयं सपज्जवसियं बंधइ, साईयं अपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं सपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं अपज्जवसियं बंधइ ?
गोयमा ! साईयं सपज्जवसियं बंधइ, नो साईयं अपज्जवसियं बंधइ, नो अणाईयं सपज्जवसियं बंधइ, नो अणाईयं अपज्जवसियं बंधइ ।
[१५ प्र.] भगवन् ! जीव ऐर्यापथिक कर्म क्या सादि - सपर्यवसित बांधता है, या सादि अपर्यवसित बांधता है, अथवा अनादि-सपर्यवसित बांधता हैं; या अनादि-अपर्यवसित बांधता है ?
[१५ उ.] गौतम ! जीव ऐर्यापथिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है, किन्तु सादि- अपर्यवसित नहीं बांधता, अनादि-सपर्यवसित नहीं बांधता और न अनादि-अपर्यवसित बांधता है।
१६.
. तं भंते! किं देसेणं देसं बंधड़, देसेणं सव्वं बंधइ, सव्वेणं देसं बंधइ, सव्वेणं सव्वं बंधइ ? गोयमा ! नो देसेणं देसं बंधइ, देसेणं सव्वं बंधइ, नो सव्वेणं देसं बंधइ, सव्वेणं सव्वं बंधइ ।
[१६ प्र.] भगवन् ! जीव ऐर्यापथिक कर्म देश से आत्मा के देश को बांधता है, देश से सर्व को बांधता है, सर्व से देश को बांधता है या सर्व से सर्व को बांधता है ?
[१६ उ.] गौतम ! वह ऐर्यापथिक कर्म देश से देश को नहीं बांधता, देश से सर्व को नहीं बांधता, सर्व से देश को नहीं बांधता, किन्तु सर्व से सर्व को बांधता है।