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________________ अष्टम शतक : उद्देशक-८ ३४३ बंधइ बंधिस्सइ; एवं जाव अत्थेगतिए न बंधी बंधइ बंधिस्सइ । णो चेव णं न बंधी बंधइ न बंधिस्सइ । अत्थेगतिए न बंधी न बंधइ बंधिस्सइ । अत्थेगतिए न बंधी न बंधइ न बंधिस्सइ । [१४ प्र.] भगवन् ! क्या जीव ने (ऐर्यापथिक कर्म) १ – बांधा है, बांधता है और बांधेगा; अथवा २ – बांधा है, बांधता है, नहीं बांधेगा; या ३ – बांधा है, नहीं बांधता है, बांधेगा; अथवा ४ – बांधा है, नहीं _ बांधता है, नहीं बांधेगा, या ५ – नहीं बांधा, बांधता है, बांधेगा, अथवा ६ – नहीं बांधा, बांधता है नहीं बांधेगा, या ७– नहीं बांधा, नहीं बांधता, बांधेगा; अथवा ८ – न बांधा, न बांधता है, न बांधेगा ? - [१४ उ.] गौतम ! भवाकर्ष की अपेक्षा किसी एक जीव ने बांधा है, बांधता है और बांधेगा; किसी एक जीव ने बांधा है, बांधता है, और नहीं बांधेगा; यावत् किसी एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है, नहीं बांधेगा। इस प्रकार (प्रश्न में कथित ) सभी (आठों) भंग यहाँ कहने चाहिए। ग्रहणाकर्ष की अपेक्षा (१) किसी एक जीव ने बांधा, बांधता है, बांधेगा; (२) किसी एक जीव ने बांधा, बांधता है, नहीं बांधेगा; (३) बांधा, नहीं बांधता है, बांधेगा; (४) बांधा, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा; (५) किसी एक जीव ने नहीं बांधा, बांधता है, यहाँ तक (यावत्) कहना चाहिए। इसके पश्चात् छठा भंग नहीं बांधा, बांधता नहीं है, बांधेगा; नहीं कहना चाहिए। (तदनन्तर सातवाँ भंग ) — किसी एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता है, बांधेगा, और आठवाँ भंग एक जीव ने नहीं बांधा, नहीं बांधता, नहीं बांधेगा ( कहना चाहिए)। १५. तं भंते! किं साईयं सपज्जवसियं बंधइ, साईयं अपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं सपज्जवसियं बंधइ, अणाईयं अपज्जवसियं बंधइ ? गोयमा ! साईयं सपज्जवसियं बंधइ, नो साईयं अपज्जवसियं बंधइ, नो अणाईयं सपज्जवसियं बंधइ, नो अणाईयं अपज्जवसियं बंधइ । [१५ प्र.] भगवन् ! जीव ऐर्यापथिक कर्म क्या सादि - सपर्यवसित बांधता है, या सादि अपर्यवसित बांधता है, अथवा अनादि-सपर्यवसित बांधता हैं; या अनादि-अपर्यवसित बांधता है ? [१५ उ.] गौतम ! जीव ऐर्यापथिक कर्म सादि-सपर्यवसित बांधता है, किन्तु सादि- अपर्यवसित नहीं बांधता, अनादि-सपर्यवसित नहीं बांधता और न अनादि-अपर्यवसित बांधता है। १६. . तं भंते! किं देसेणं देसं बंधड़, देसेणं सव्वं बंधइ, सव्वेणं देसं बंधइ, सव्वेणं सव्वं बंधइ ? गोयमा ! नो देसेणं देसं बंधइ, देसेणं सव्वं बंधइ, नो सव्वेणं देसं बंधइ, सव्वेणं सव्वं बंधइ । [१६ प्र.] भगवन् ! जीव ऐर्यापथिक कर्म देश से आत्मा के देश को बांधता है, देश से सर्व को बांधता है, सर्व से देश को बांधता है या सर्व से सर्व को बांधता है ? [१६ उ.] गौतम ! वह ऐर्यापथिक कर्म देश से देश को नहीं बांधता, देश से सर्व को नहीं बांधता, सर्व से देश को नहीं बांधता, किन्तु सर्व से सर्व को बांधता है।
SR No.003443
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1983
Total Pages669
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, Metaphysics, & agam_bhagwati
File Size14 MB
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