Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [११] ऐसी स्थिति (संसार के समस्त जीव असंयत और हिंसादिदोषपरायण हैं, ऐसी परिस्थिति) में आजीविक मत में ये बारह आजीविकोपासक हैं—(१) ताल, (२) तालप्रलम्ब, (३) उद्विध, (४) संविध, (५) अवविध, (६) उदय, (७) नामोदय, (८) नर्मोदय, (९) अनुपालक, (१०) शंखपालक, (११) अयम्बुल और (१२) कातरक।
१२. इच्चेते दुवालस आजीवियोवासगा अरहंतदेवतागा अम्मा-पिउसुस्सूसगा; पंचफलपडिक्कंता, तं जहा—उंबरेहि, वडेहिं, बोरेहि सतरेहिं पिलंखूहि; पलंडु-ल्हसण-कंद-मूलविवजगा अणिल्लंछिएहिं अणक्कभिन्नेहिं गोणेहिं तसपाणविवज्जिएहिं चित्तेहिं वित्तिं कप्पेमाणे विहरंति।
[१२] इसी प्रकार ये बारह आजीविकोपासक हैं। इनका देव अरहंत (स्वमत-कल्पना से गोशालक अर्हत्) है। माता-पिता की सेवा-शुश्रूषा करते हैं । वे पांच प्रकार के फल नहीं खाते (पाँच फलों से विरत हैं।) वे इस प्रकार-उदुम्बर (गुल्लर) के फल, बड़ के फल, बोर, सत्तर (शहतूत) के फल, पीपल (पक्ष) फल तथा प्याज (पलाण्डु), लहसुन, कन्दमूल के त्यागी होते हैं तथा अनिलांछित (खस्सी-वधिया न किये हुए) और नाक नहीं नाथे हुए बैलों से त्रस प्राणी की हिंसा से रहित व्यापार द्वारा आजीविका करते हुए विहरण (जीवनयापन) करते हैं।
१३. 'एए वि ताव एवं इच्छंति, किमंग पुण जे इमे समणोवासगा भवंति ?' जेसिं नो कप्पंति इमाइं पण्णरस कम्मादाणाई सयं करेत्तए वा, कारवेत्तए वा, करेंतं वा अन्नं न समणुजाणेत्तए, तं जहा इंगालकम्मे वणकम्मे साडीकम्मे भाडीकम्मे फोडीकम्मे दंतवाणिजे लक्खवाणिजे केसवाणिजे रसवाणिजे विसवाणिजे जंतपीलणकम्मे निल्लंछणकम्मे दवग्गिदावणया सर-दहतलायपरिसोसणया असतीपोसणया।
[१३] जब इन आजीविकोपासकों को यह अभीष्ट है, तो फिर जो श्रमणोपासक हैं, उनका तो कहना ही क्या है ?; (क्योंकि उन्होंने तो विशिष्टतर देव, गुरु और धर्म का आश्रय लिया है!)
जो श्रमणोपासक होते हैं, उनके लिए ये पन्द्रह कर्मादान स्वयं करना, दूसरों से कराना और करते हुए का अनुमोदन करना कल्पनीय (उचित) नहीं हैं। वे कर्मादान इस प्रकार हैं- (१) अंगारकर्म, (२) वनकर्म, (३) शकटिकर्म, (५) भाटीकर्म, (६) स्फोटककर्म, (७) दन्तवाणिज्य, (८) लाक्षावाणिज्य, (९) रसवाणिज्य, (१०) विषवाणिज्य, (११) यंत्रपीडन कर्म, (१२) निल्छनकर्म, (१३) दावाग्निदापनता, (१४) सरो-हृदतडागशोषणता, (१५) असतीपोषणता।
१४. इच्चेते समणोवासगा सुक्का सुक्काभिजातीया भवित्ता कालमासे कालं किच्चा अन्नयरेसु देवलोएसु देवत्ताए उववत्तारो भवंति।
.. [१४] ये श्रमणोपासक शुक्ल (पवित्र), शुक्लाभिजात (पवित्र कुलोत्पन्न) हो कर काल (मरण) के समय-मृत्यु प्राप्त करके किन्हीं देवलोकों में देवरूपं से उत्पन्न होते हैं।
विवेचन—आजीविकोपासकों के सिद्धान्त, नाम, आचार-विचार और श्रमणोपासकों की उनसे विशेषता—प्रस्तुत पांच सूत्रों में आजीविकोपासकों के सिद्धान्त, नाम, आचार-विचार आदि तथ्यों का निरूपण करके श्रमणोपासकों की उनसे विशेषता बताई गई है।