Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-५
३०९
| विकल्प | करण | योग | भंग
विवरण एक । तीन | ३ | कृत का मन-वचन-काय से; कारित का मन-वचन-काय से और
अनमोदित का मन-वचन-काय से निषेध। | एक | दो | ९ | कृत का मन-वचन से, मन-काय से, वचन-काय से, कारित का
मन-वचन से, मन-काय से और वचन-काय से; इसी प्रकार
अनुमोदित का निषेध। | एक - एक | ९ | कृत का मन से, वचन से, काय से, कारित का भी इसी तरह और
अनुमोदित का भी इसी तरह निषेध ।
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कुल भंग = ४९ भूतकाल के प्रतिक्रमण, वर्तमानकाल के संवर और भविष्य के लिए प्रत्याख्यान की प्रतिज्ञा, इस प्रकार तीनों काल की अपेक्षा ४९ भंगों को ३ से गुणा करने पर १४७ भंग होते हैं। ये स्थूल प्राणातिपात-विषयक हुए। इसी प्रकार स्थूल मृषावाद, स्थूल अदत्तादान, स्थूल मैथुन और स्थूल परिग्रह, इन प्रत्येक के १४७-१४७ भंग होते हैं। यों पांचों अणुव्रतों के कुल भंग ७३५ होते हैं। श्रावक इन ४९ भंगों में से किसी भी भंग से यथाशक्ति प्रतिक्रमण, संवर या प्रत्याख्यान कर सकता है। तीन करण तीन योग से संवर या प्रत्याख्यानादि श्रावकप्रतिमा स्वीकार किया हुआ श्रावक कर सकता है। आजीविकोपासकों के सिद्धान्त, नाम, आचार-विचार और श्रमणोपासकों की उनसे विशेषता
९. एए खलु एरिसगा समणोवासगा भवंति, नो खलु एरिसगा आजीवियोवासगा भवंति। [९] श्रमणोपासक ऐसे होते हैं, किन्तु आजीविकोपासक ऐसे नहीं होते।
१०. आजीवियसमयस्स णं अयमद्धे पण्णत्ते-अक्खीणपडिभोइणो सव्वे सत्ता, से हंता छेत्ता भत्ता लुंपित्ता विलुपित्ता उद्दवइत्ता आहारमाहारेंति।
। [१०] आजीविक (गोशालक) के सिद्धान्त का यह अर्थ (तत्त्व) है कि समस्त जीव अक्षीणपरिभोजी (सचित्ताहारी) होते हैं। इसलिए वे (लकड़ी आदि से) हनन (ताड़न) करके, (तलवार आदि से) काट कर, (शूल आदि से) भेदन करके, (पंख आदि को) कतर (लुप्त) कर, (चमड़ी आदि को) उतार कर (विलुप्त करके) और विनष्ट करके खाते (आहार करते हैं।
११. तत्थ खलु इमे दुवालस आजीवियोवासगा भवंति, तं जहा–ताले १ तालपलंबे २ उबिहे ३ संविहे ४ अवविहे ५ उदए ६ नामुदए ७ णम्मुदए ८ अणुवालए ९ संखवालए १० अयंबुले ११ कायरए १२।
१. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३७०-३७१