Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र प्राणातिपातादि से विरति कष्टकर एवं अरुचिकर लगती है, किन्तु उसका परिणाम अतीव हितकर और सुखकर होता है। अग्निकाय को जलाने और बुझाने वालों में से महाकर्म आदि और अल्पकर्मादि से संयुक्त कौन और क्यों?
१९.[१] दो भंते ! पुरिसा सरिसया जाव सरिसभंडमत्तोवगरणा अनमनेणं सद्धिं अगणिकायं समारभंति, तत्थ णं एगे पुरिसे अगणिकायं उजालेति, एगे पुरिसे अगणिकायं निव्वावेति। एतेसि णं भंते ! दोण्हं पुरिसाणं कतरे पुरिसे महाकम्मतराए चेव, महाकिरियतराए चेव, महासवतराए चेव, महावेदणतराए चेव ? कतरे वा पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेदणतराए चेव ? जे वा से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेति, जे वा से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेति ?
कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जलेति से णं पुरिसे महाकम्मतराए चेव जाव महावेदणतराए चेव। तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेति से णं पुरिसे अप्पकम्मतराए चेव जाव अप्पवेयणतराए चेव।
[१९-१ प्र.] भगवन् ! (मान लीजिए) समान उम्र के यावत् समान ही भाण्ड, पात्र और उपकरण वाले दो पुरुष एक-दूसरे के साथ अग्निकाय का समारम्भ करें; अर्थात् उनमें से एक पुरुष अग्निकाय को जलाए और एक पुरुष अग्निकाय को बुझाए, तो हे भगवन् ! उन दोनों पुरुषों में से कौन-सा पुरुष महाकर्म वाला, महाक्रिया वाला, महा-आस्रव वाला और महावेदना वाला है और कौन-सा पुरुष अल्पकर्म वाला, अल्पक्रिया वाला, अल्प आस्रव वाला और अल्पवेदना वाला होता है ? (अर्थात्-) दोनों में से जो पुरुष अग्नि जलाता है, वह महाकर्म आदि वाला होता है, या जो आग बुझाता है, वह महाकर्मादि युक्त होता है ?
[१९-१ उ.] हे कालोदायी ! उन दोनों पुरुषों में से जो पुरुष अग्निकाय को जलाता है, वह पुरुष महाकर्म वाला यावत् महावेदना वाला होता है और जो पुरुष अग्निकाय को बुझाता है, वह अल्पकर्म वाला यावत् अल्पवेदना वाला होता है।
[२] से केणढेणं भंते ! एवं वुच्चइ-'तत्थ णं जे से पुरिसे जाव अप्पवेयणतराए चेव' ?
कालोदाई ! तत्थ णं जे से पुरिसे अगणिकायं उज्जालेति से णं पुरिसे बहुतरागं पुढविकायं समारभति, बहुतरागं, आउक्कायं समारभति, अप्पतरागं तेउकायं समारभति, बहुतरागं, वाउकायं समारभति, बहुतरागं वणस्सतिकायं समारभति, बहुतरागं तसकायं समारभति। तत्थ णे जे से पुरिसे अगणिकायं निव्वावेति से णं पुरिसे अप्पतरागं पुढविक्कायं समारभति, अप्प० आउ०, बहुतरागं तेउक्कायं समारभति,अप्पतरागंवाउकायं समारभति, अप्पतरागंवणस्सतिकायं समारभति,अप्पतरागं तसकायं समारभति। से तेणढेणं कालोदाई ! जाव अप्पवेदणतराए चेव।
[१९-२ प्र.] भगवन् ! ऐसा आप किस कारण से कहते हैं, कि उन दोनों पुरुषों में से जो पुरुष अग्निकाय को जलाता है, वह महाकर्म वाला आदि होता है और जो अग्निकाय को बुझाता है, वह अल्पकर्म
१. भगवती. अ. वृत्ति, पत्रांक ३२६