Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मोसमणप्पओगपरिणए ६। अहबेगे सच्चमणप्पओगपरिणए, एगे असच्चामोसमणप्पओगपरिणए ७।अहवेगेमोसमणप्पयोगपरिणते,एगेसच्चामोसमणप्पयोगपरिणते ८ अहवेगे मोसमणप्पयोगपरिणते एगे असच्चामोसमणप्पयोगपरिणते ९। अहवेगे सच्चामोसमणप्पओगपरिणते, एगे असच्चामोसमणप्पओगपरिणते १०।
[८२ प्र.] भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, तो क्या सत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं, या असत्य मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा सत्यमृषामनःप्रयोग-परिणत होते हैं, या असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होते हैं ?
[८२ उ.] गौतम ! वे (दो द्रव्य) (१-४) सत्यमनःप्रयोगपरिणत होते हैं, यावत् असत्यामृषामनःप्रयोगपरिणत होते हैं; (५) या उनमें से एक द्रव्य सत्यमनःप्रयोगपरिणत होता है और दूसरा मृषामन:प्रयोगपरिणत होता है अथवा (६) एक द्रव्य सत्यमन:प्रयोगपरिणत होता है और दूसरा सत्यमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है, या (७) एक द्रव्य सत्यमन:प्रयोग-परिणत होता है और दूसरा असत्यामृषामनः प्रयोगपरिणत होता है; अथवा (८) एक द्रव्य मृषामन:प्रयोगपरिणत होता है और दूसरा सत्यमृषामनःप्रयोगपरिणत होता है अथवा (१०) एक द्रव्य सत्यमृषामन:प्रयोगपरिणत होता है और दूसरा असत्यामृषामन:प्रयोगपरिणत होता है।
८३. जइ सच्चमणप्पओगपरिणता किं आरंभसच्चमणप्पयोगपरिणया जाव असमारंभसच्चमणप्पयोगपरिणता?
गोयमा ! आरंभसच्चमणप्पयोगपरिणया जाव असमारंभसच्चमणप्पयोगपरिणया वा। अहवेगे आरंभसच्चमणप्पयोगपरिणते। एगे अणारंभसच्चमणप्पयोगपरिणते। एवं एएणं गमएणं दुयसंजोएणं नेयव्वं। सव्वे संयोगा जत्थ जत्तिया उद्वेति ते भाणियव्वा जाव सव्वट्ठसिद्धग त्ति।
[८३ प्र.] भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) सत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं तो क्या वे आरम्भ-सत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं या अनारम्भसत्यमनःप्रयोग-परिणत होते हैं, अथवा संरम्भ (सारम्भ) सत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं, या असंरम्भ (असारम्भ) सत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा समारम्भसत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं, या असमारम्भसत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं ?
[८३ उ.] गौतम ! वे दो द्रव्य (१-६) आरम्भसत्यमन:प्रयोगपरिणत होते है, अथवा यावत् असमारम्भसत्यमन:प्रयोगपरिणत होते हैं; अथवा एक द्रव्य आरम्भसत्यमन:प्रयोगपरिणत होता है और दूसरा अनारम्भसत्य-मनःप्रयोगपरिणत होता है। इसी प्रकार इस गम (पाठ) के अनुसार द्विकसंयोगी भंग करने चाहिए। जहाँ जितने भी द्विकसंयोग हो सकें, उतने सभी यहाँ सर्वार्थसिद्धवैमानिकदेव पर्यन्त कहने चाहिए।
८४. जदि मीसापरिणता किं मणमीसापरिणता ? एवं मीसापरिणया वि।
[८४ प्र.] भगवन् ! यदि वे (दो द्रव्य) मिश्रपरिणत होते हैं तो मनोमिश्रपरिणत होते हैं ?, (इत्यादि पूर्ववत् प्रयोगपरिणत वाले प्रश्नों की तरह यहाँ भी सभी प्रश्न उपस्थित करने चाहिए।)