Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
[११४-१] श्रोत्रेन्द्रियलब्धियुक्त जीवों का कथन इन्द्रियलब्धिवाले जीवों की तरह (सू. ११३ के अनुसार) करना चाहिए।
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[२] तस्स अलद्धिया णं० पुच्छा ।
गोयमा ! नाणी व अण्णाणी वि । जे नाणी ते अत्थेगतिया दुन्नाणी, अत्थेगतिया एगन्नाणी । जे दुन्नाणी ते आभिणिबोहियनाणी सुयनाणी । जे एगनाणी ते केवलनाणी । जे अण्णाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहा – मइअण्णणी य, सुयअण्णाणी य ।
[११४-२ प्र.] भगवन् ! श्रोत्रेन्द्रियलब्धि-रहित जीव ज्ञानी होते हैं, या आज्ञानी ?
[११४-२ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं और अज्ञानी भी होते हैं। जो ज्ञानी होते हैं, उनमें से कई दो ज्ञान वाले होते हैं और कई एक ज्ञान वाले होते हैं। जो दो ज्ञान वाले होते हैं, वे आभिनिबोधिकज्ञानी और श्रुतज्ञानी होते हैं। जो एक ज्ञान वाले होते हैं, वे केवलज्ञानी होते हैं। जो अज्ञानी होते हैं, वे नियमत: दो अज्ञानवाले होते हैं यथा——मति - अज्ञान और श्रुत - अज्ञान ।
११५. चक्खिदिय - घाणिंदियाणं लद्धियाणं अलद्धियाण य जहेव सोइंदियस्स (सु. ११४)। [११५] चक्षुरिन्द्रिय और घ्राणेन्द्रियलब्धि वाले जीवों का कथन श्रोत्रेन्द्रियलब्धिमान् जीवों के समान (सू. ११४ की तरह) करना चाहिए । चक्षुरिन्द्रिय- घ्राणेन्द्रियलब्धि-रहित जीवों का कथन श्रोत्रेन्द्रियलब्धिरहित जीवों के समान करना चाहिए।
११६. [ १ ] जिब्भिदियलद्धियाणं चत्तारि णाणाइं, तिण्णि य अण्णाणाणि भयणाएं । [११६-१] जिह्वेन्द्रियलब्धि वाले जीवों में चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं।
[२] तस्स अलद्धिया णं० पुच्छा ।
गोमा ! नाणी वि, अण्णाणी वि । जे नाणी ते नियमा एगनाणी - केवलनाणी । जे अण्णाणी ते नियमा दुअन्नाणी, तं जहा – मइअण्णाणी य, सुतअन्नाणी य ।
[११६-२ प्र.] भगवन् ! जिह्वेन्द्रियलब्धिरहित जीव ज्ञानी होते हैं या अज्ञानी, यह प्रश्न है।
[११६-२ प्र.] गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी होते हैं, जो ज्ञानी वे नियमतः एकमात्र केवलज्ञान वाले होते हैं और जो अज्ञानी होते हैं, वे नियमत: दो अज्ञान वाले होते हैं, यथा— मति - अज्ञान और श्रुत- अज्ञान ।
११७. फासिंदियलद्धियाणं अलद्धियाणं जहा इंदियलद्धिया य अलद्धिया य (सु. ११३ ) । १ ।
[११७] स्पर्शेन्द्रियलब्धियुक्त जीवों का कथन इन्द्रियलब्धि वाले जीवों के समान (सू. ११३ के अनुसार) करना चाहिए। (अर्थात् उनमें चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं।) स्पर्शेन्द्रियलब्धिरहित जीवों का कथन इन्द्रियलब्धिरहित जीवों के समान (सू. ११३ के अनुसार) करना चाहिए। (अर्थात्— उनमें एकमात्र केवलज्ञन होता है।)