Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक - २
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विग्रहगति केवलीसमुद्घात और अयोगीदशा में जीव अनाहारक होते हैं। शेष अवस्था में जीव आहारक होते हैं। अनाहारक केवली को केवलीसमुद्घातदशा में या अयोगीदशा में एकमात्र केवलज्ञान ही होता है। इसी दृष्टि से अनाहारक जीवों में चार ज्ञान (मनः पर्यवज्ञान को छोड़कर) और तीन अज्ञान भजना से कहे गए हैं।" सोलहवें विषयद्वार के माध्यम से द्रव्यादि की अपेक्षा ज्ञान और अज्ञान का निरूपण
१४४. आभिणिबोहियनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते ?
गोयमा ! से समासतो चडव्विहे पण्णत्ते, तं जहा—दव्वतो खेत्ततो कालतो भावतो । दव्वतो णं आभिणिबोहियनाणी आदेसेणं सव्वदव्वाइं जाणति पासति । खेत्ततो आभिणिबोहियणाणी आदेसेणं सव्वं खेत्तं जाणति पासति । एवं कालतो वि । एवं भावओ वि ।
[१४४ प्र.] भगवन् ! आभिनिबोधिकज्ञान का विषय कितना व्यापक कहा गया है ?
[१४४ उ.] गौतम ! वह (आभिनिबोधिकज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का बताया गया है । यथा— द्रव्य से क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से आभिनिबोधिकज्ञानी आदेश (सामान्य) से सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है, क्षेत्र से आभिनिबोधिकज्ञान समान्य से सभी क्षेत्र को जानता और देखता है, इसी प्रकार काल से भी और भाव से भी जानना चाहिए।
१४५. सुयनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते ?
गोमा ! से समासओ चउव्विहे पण्णत्ते, तं जहा—दव्वतो खेत्ततो कालतो भावतो । दव्वतो सुयनाणी उवयुत् सव्वदव्वाइं जाणति पासति । एवं खेत्ततो वि, कालतो वि । भावतो णं सुयनाणी उवजुत्ते सव्वभावे जाणति पासति ।
[१४५ प्र.] भगवन् ! श्रुतज्ञान का विषय कितना कहा गया है ?
[.१४५ उ.] गौतम ! वह ( श्रुतज्ञान का विषय ) संक्षेप में चार प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार - द्रव्य से क्षेत्र से काल से और भाव से । द्रव्य से उपयोगयुक्त (उपयुक्त) श्रुतज्ञानी सर्वद्रव्यों को जानता और देखता है। क्षेत्र में श्रुतज्ञानी उपयोगसहित सर्वक्षेत्र को जानता - देखता है। इसी प्रकार काल से भी जानना चाहिए। भाव से उपयुक्त (उपयोगयुक्त) श्रुतज्ञानी सर्वभावों को जानता और देखता है।
१४६. ओहिनाणस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते ?
गोयमा ! से समासओ चडव्विहे पण्णत्ते, तं जहा— दव्वतो खेत्ततो कालतो भावतो । दव्वतो णं ओहिनाणी रूविदव्वाइं जाणति पासति जहा नंदीए जाव भावतो ।
[१४३ प्र.] भगवन् ! अवधिज्ञान का विषय कितना कहा गया है ?
[१४३ उ.] गौतम ! वह (अवधिज्ञान का विषय) संक्षेप में चार प्रकार का है। वह इस प्रकार — द्रव्य से, क्षेत्र से, काल से और भाव से । द्रव्य से अवधिज्ञानी रूपी द्रव्यों को जानता और देखता है। (तत्पश्चात् क्षेत्र से, काल से और भाव से) इत्यादि वर्णन जिस प्रकार नन्दीसूत्र में किया गया है, उसी प्रकार 'भाव' पर्यन्त यहाँ वर्णन करना चाहिए।
१. भगवतीसूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक ३५५, ३५६