Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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किये।
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बीओ उद्देसओ : 'आसीविसे'
द्वितीय उद्देशक : 'आशीविष' आशीविष : दो मुख्य प्रकार और उनके अधिकारी तथा विष-सामर्थ्य
१. कतिविहा णं भंते ! आसीविसा पण्णत्ता ! गोयमा ! दुविहा आसीविसा पन्नत्ता, तं जहा–जातिआसीविसा य कम्मआसीविसा य। [१ प्र.] भगवन् ! आशीविष कितने प्रकार के कहे गए हैं ?
[१ उ.] गौतम ! आशीविष दो प्रकार के कहे गये हैं । वें इस प्रकार—जाति-आशीविष और कर्मआशीविष।
२. जातिआसीविसा णं भंते ! कतिविहा पण्णत्ता?
गोयमा ! चउव्विहा पण्णत्ता, तं जहा–विच्छ्यजातिआसीविसे, मंडुक्कजातिआसीविसे, उरगजातिआसीविसे, मणुस्सजातिआसीविसे।
[२ प्र.] भगवन् ! जाति-आशीविष कितने प्रकार के कहे गये हैं ?
[२ उ.] गौतम ! जाति-आशीविष चार प्रकार के कहे गये हैं-(१) वृश्चिक-जाति-आशीविष (२) मण्डूकजाति-आशीविष, (३) उरगजाति-आशीविष और (४) मनुष्यजाति-आशीविष।
३. विच्छुयजातिआसीविसस्स णं भंते ! केवतिए विसए पण्णत्ते ? ___ गोयमा ! पभू णं विच्छुयजातिआसीविसे अद्धभरहप्पमाणमेत्तं बोंदिं विसेणं विसपरिगयं विसट्ठमाणिं पकरेत्तए। विसए से विसट्टयाए, नो चेव णं संपत्तीए करेंसु वा, करेंति वा, करिस्संति वा१।
[३ प्र.] भगवन् ! वृश्चिकजाति-आशीविष का कितना विषय कहा गया है ? (अर्थात् वृश्चिकजातिआशीविष का सामर्थ्य कितना है ?)
[३ उ.] गौतम ! वृश्चिकजाति-आशीविष अर्द्धभरतक्षेत्र-प्रमाण शरीर को विषयुक्त-विषैला या विष से व्याप्त करने में समर्थ है। इतना उसके विष का सामर्थ्य हैं, किन्तु सम्प्राप्ति द्वारा अर्थात् क्रियात्मक प्रयोग द्वारा उसने न ऐसा कभी किया है, न करता है और न कभी करेगा।
४. मंडुक्कजातिआसीविसस्स पुच्छा।
गोयमा ! पभूणं मंडुक्कजातिआसीविसे भरहप्पमाणमेत्तं बोदिं विसेणं विसपरिगयं० । सेसं तं चेव, नो चेव जाव करिस्संति वा २।