Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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अष्टम शतक : उद्देशक-२
जहा सिद्धा (सु० ३८)।२। [४८ प्र.] भगवन् ! अनिन्द्रिय (इन्द्रियरहित) जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं ? [४८ उ. ] गौतम ! उनके विषय में सिद्धों (सू. ३८ में कथित) की तरहा जानना चाहिए।
(द्वितीय द्वार) ४९. सकाइया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ? गोयमा ! पंच नाणाणि तिण्णि अन्नाणाई भयणाए। [४९ प्र.] भगवन् ! सकायिक (कायासहित) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [४९ उ.] गौतम ! सकायिक जीवों के पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं।
५०. पुढविकाइया जाव वणस्सइकाइया नो नाणी, अण्णाणी। नियमा दुअण्णाण, तं जहामतिअण्णाणी य सुयअण्णाणी य।
[५०] पृथ्वीकायिक से वनस्पतिकायिक जीव तक ज्ञानी नहीं, अज्ञानी होते हैं । वे नियमत: दो अज्ञान (मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञान) वाले होते हैं।
५१. तसकाइया जहा सकाइया (सु. ४९)। [५१] त्रसकायिक जीवों का कथन सकायिक जीवों के समान [सू. ४९] समझना चाहिए। ५२. अकाइया णं भंते ! जीवा किं नाणी० ? जहा सिद्धा (सु. ३८)।३। [५२ प्र.] भगवन् ! अकायिक (कायारहित) जीव ज्ञानी हैं अथवा अज्ञानी हैं ? [५२ उ.] गौतम ! इनके विषय में सिद्धों की तरह जानना चाहिए।
(तृतीय द्वार) ५३. सुहुमा णं भंते ! जीवा किं नाणी ? जहा पुढविकाइया (सु. ५०)। [५३ प्र.] भगवन् ! सूक्ष्म जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[५३ उ.] गौतम ! इनके विषय में पृथ्वीकायिक जीवों (सू. ५० में कथित) के समान कथन करना चाहिए।
५४. बादरा णं भंते ! जीवा किं नाणी० ? जहा सकाइया (सु. ४९) [५४ प्र.] भगवन् ! बादर जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं ? [५४ उ.] गौतम ! इनके विषय में सकायिक जीवों (सू. ४९ में कथित) के समान कहना चाहिए।