Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
गोयमा ! नाणी वि, अण्णाणी वि । केवलनाणवज्जाइं चत्तारि णाणाइं, तिण्णि अण्णाणाई
भयणाए ।
२७०
[९६-२ प्र.] भगवन् ! केवलज्ञानलब्धिरहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[९६-२ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी हैं और अज्ञानी भी हैं। उनमें या तो केवलज्ञान को छोड़कर शेष ४ ज्ञान और ३ अज्ञान भजना से पाए जाते हैं।
९७. [ १ ] अण्णाणलद्धिया णं० पुच्छा ।
गोयमा ! नो नाणी, अण्णाणी; तिणिण अण्णाणाई भयणाए ।
[९७-१ प्र.] भगवन् ! अज्ञानलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं, या अज्ञानी हैं, यह प्रश्न है ?
[९७-१ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी नहीं, अज्ञानी हैं। उनमें तीन अज्ञान भजना से पाए जाते हैं ।
[२] तस्स अलद्धीया णं० पुच्छा ।
गोयमा ! नाणी, नो अण्णाणी । पंच नाणाई भयणाए ।
[९७-२ प्र.] भगवन् ! अज्ञानलब्धि से रहित जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[ ९७-२ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी हैं, अज्ञानी नहीं। उनमें ५ ज्ञान भजना से पाए जाते हैं।
९८. जहा अण्णाणस्स लद्धिया अलद्धिया य भणिया एवं मइअण्णाणस्स, सुयअण्णाणस्स यलद्धिया अलद्धिया य भाणियव्वा ।
[९८] जिस प्रकार अज्ञानलब्धियुक्त और अज्ञानलब्धि से रहित जीवों का कथन किया है, उसी प्रकार मति-अज्ञान और श्रुत-अज्ञानलब्धि वाले तथा इन लब्धियों से रहित जीवों का कथन करना चाहिए।
९९. विभंगनाणलद्धिया णं तिणिण अण्णाणाइं नियमा । तस्स अलद्धियाणं पंच नाणाई भयणाए। दो अण्णाणाई नियमा।
[ ९९ ] विभंगज्ञान से युक्त जीवों में नियमत: तीन अज्ञान होते हैं, और विभंगज्ञान - लब्धिरहित जीवों पाँच ज्ञान भजना से और दो अज्ञान नियमत: होते हैं ।
१००. [१] दंसणलद्धिया णं भंते! जीवा किं नाणी, अण्णाणी ?
गोमा ! नाणी वि, अण्णाणी वि। पंच नाणाई, तिणिण अण्णाणाई भयणाए ।
[१००-१ प्र.] भगवन् ! दर्शनलब्धि वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[१००-१ उ.] गौतम ! वे ज्ञानी भी होते हैं, अज्ञानी भी। उनमें पांच ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से
होते हैं।
[२] तस्स अलद्धिया णं भंते ! जीवा किं नाणी अन्नाणी ?