Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [४० प्र.] भगवन् ! तिर्यञ्चयोनिक (तिर्यञ्चगति में जाते हुए) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [४० उ.] गौतम ! उनमें नियमतः दो ज्ञान या दो अज्ञान होते हैं। ४१. मणुस्सगतिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अन्नाणी? गोयमा ! तिण्णि नाणाई भयणाए, दो अण्णाणाई नियमा। [४१ प्र.] भगवन् ! मनुष्यगतिक (मनुष्यगति में जाते हुए) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [४१ उ.] गौतम ! उनके भजना (विकल्प) से तीन ज्ञान होते हैं, और नियमतः दो अज्ञान होते हैं। ४२. देवगतिया जहा निरयगतिया। [४२] देवगतिक जीवों में ज्ञान और अज्ञान का कथन निरयगतिक जीवों के समान समझना चाहिए। ४३. सिद्धगतिया णं भंते ! ०। जहा सिद्धा (सु० ३८)।१। [४३ प्र.] भगवन् ! सिद्धगतिक जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ?
[४३ उ.] गौतम ! उनका कथन सिद्धों की तरह करना चाहिये। अर्थात्—वे नियमत: एक केवलज्ञान वाले होते हैं। (प्रथमद्वार)
४४. सइंदिया णं भंते ! जीवा किं नाणी, अण्णाणी? गोयमा ! चत्तारि नाणाई, तिण्णि अण्णाणाई भयणाए। [४४ प्र.] भगवन् ! सेन्द्रिय (इन्द्रिय वाले) जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी ? [४४ उ.] गौतम ! उनके चार ज्ञान और तीन अज्ञान भजना से होते हैं। ४५. एगिंदिया णं भंते ! जीवा किं नाणी०? जहा पुढविक्काइया। [४५ प्र.] भगवन् ! एक इन्द्रिय वाले जीव ज्ञानी हैं या अज्ञानी हैं ? [४५ उ.] गौतम ! इनके विषय में पृथ्वीकायिक जीवों (सू. २७ में कथित) की तरह कहना चाहिये। ४६. बेइंदिय-तेइंदिय-चतुरिंदियाणं दो नाणा, दो अण्णाणा नियमा। [४३] दो इन्द्रियों, तीन इन्द्रियों और चार इन्द्रियों वाले जीव में दो ज्ञान या दो अज्ञान नियमत: होते हैं। ४७. पंचिंदिया जहा संइदिया। [४७] पांच इन्द्रियों वाले जीवों का कथन सेन्द्रिय जीवों की तरह करना चाहिए। ४८. अणिंदिया णं भंते ! जीवा किं नाणी०?