Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र
गोयमा ! पयोगपरिणया वा, , मीसापरिणया वा, वीससापरिणया वा ३ । अहवेगे पओगपरिणए, तिणि मीसापरिणया १ | अहवा एगे पओगपरिणए, तिण्णि वीससापरिणया २ । अहवा दो पयोगपरिणया, दो मीसापरिणया ३ | अहवा दो पयोगपरिणया, दो वीससापरिणया ४ | अहवा तिण्णि पओगपरिणया, एगे मीसापरिणए ५ । अहवा तिण्णि पओगपरिणया, एगे वीससापरिणए ६ | अहवा एगे मीसापरिणए, तिण्णि वीससापरिणया ७ | अहवा दो मीसापरिणया, दो वीससापरिणया ८ । अहवा तिण्णि मीसापरिणया, एगे वीससापरिणए ९ | अहवेगे पओगपरिणए एगे मीसापरिणए, दो वीससापरिणया १; अहवेगे पयोगपरिणए, दो मीसापरिणया, एगे वीससापरिणए; अहवा दो पयोगपरिणया, एगे मीसापरिणए, एगे वीससापरिणए ३ ।
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[८९ प्र.] भगवन् ! चार द्रव्य क्या प्रयोगपरिणत होते हैं, या मिश्रपरिणत होते हैं, अथवा विस्रसापरिणत होते हैं ?
[८९ उ.] गौतम ! (चार द्रव्य) (१) या तो प्रयोगपरिणत होते हैं, (२) या मिश्र - परिणत होते हैं, (३) अथवा विस्रसापरिणत होते हैं, (कुल ३) अथवा (१) एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है, तीन मिश्रपरिणत होते हैं, या (२) एक द्रव्य प्रयोगपरिणत होता है और तीन वित्रसापरिणत होते हैं, (३) अथवा दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं और दो मिश्रपरिणत होते हैं, (४) या दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं और दो विस्रसापरिणत होते हैं; · अथवा (५) तीन द्रव्य प्रयोग- परिणत होते हैं और एक द्रव्य मिश्रपरिणत होता है; (६) अथवा तीन द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्रसा परिणत होता है; अथवा (७) एक द्रव्य मिश्र - परिणत होता है. और तीन द्रव्य विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा (८). एक द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और दो द्रव्य विस्त्रसापरिणत होते हैं, अथवा (९) तीन द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं और एक द्रव्य विस्त्रसापरिणत होता है, अथवा (१) एक प्रयोगपरिणत होता है, एक मिश्रपरिणत होता है और दो विस्रसापरिणत होते हैं, अथवा (२) एक प्रयोगपरिणत होता है, दो द्रव्य मिश्रपरिणत होते हैं, और एक द्रव्य विस्त्रसापरिणत होता है, अथवा (३) दो द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं, एक मिश्रपरिणत होता है और एक विस्रसापरिणत होता है।
९०. जदि पयोगपरिणया किं मणप्पयोगपरिणया ३ ?
एवं एएणं कमेणं पंच छ सत्त जाव दस संखेज्जा असंखेज्जा अणंता य दव्वा भाणियव्वा । दुयासंजोएणं, तियासंजोगेणं जाव दससंजोएणं बारससंजोएणं उवजुंजिऊणं जत्थ जत्तिया संजोगा उट्ठेति ते सव्वे भाणियव्वा । एए पुण जहा नवमसए पवेसणए भणीहामि तहा उवजुंजिऊण भाणियव्वा जाव असंखेज्जा । अणंता एवं चेव, नवरं एक्कं पदं अब्भहियं जाव अहवा अणंता परिमंडलसंठाणपरिणया जाव अणंता आययसंठाणपरिणया ।
[९० प्र.] भगवन् ! यदि चार द्रव्य प्रयोगपरिणत होते हैं तो क्या वे मनःप्रयोगपरिणत होते हैं, या वचनप्रयोगपरिणत होते हैं, अथवा कायप्रयोगपरिणत होते हैं ?
[९० उ.] गौतम ! ये सब तथ्य पूर्ववत् कहने चाहिए तथा इसी क्रम में पांच, छह, सात, आठ, नौ, दस, यावत् संख्यात, असंख्यात और अनन्त द्रव्यों के विषय में कहना चाहिए। द्विकसंयोग से, त्रिकसंयोग से, यावत्