Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapati Sutra Part 02 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
अष्टम शतक : उद्देशक-१
२२९ ६०. बेइंदिय-तेइंदिय-चउरिदियाणं दुयओ भेदो-पजत्तगा य, अपजत्तगा य।
[६०] (किन्तु) द्वीन्द्रिय, त्रीन्द्रिय और चतुरिन्द्रिय के दो-दो भेद-पर्याप्तक और अपर्याप्तक (एक द्रव्य से सम्बन्धित औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत के विषय में) कहना चाहिए।
६३. जदि पंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए किं तिरिक्खजोणियपंचिंदियओरालियसरीरकायप्पओगपरिणए ? मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए !
गोयमा ! तिरिक्खजोणिय जाव परिणए वा, मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए वा। _[६१ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरि होता है, तो क्या वह तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरकायप्रयोगपरिणत होता है ?
[६१ उ.] गौतम ! या तो वह तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा वह मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरकाय-प्रयोगपरिणत होता है।
६२. जइ तिरिक्खजोणिय जाव परिणए किं जलचरतिरिक्खजोणिय जाव परिप्पए वा? थलचर०? खहचर०?
एवं चउक्कओ भेदो जाव खहचराणं। _ [६२ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोग-परिणत होता है तो क्या वह जलचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, स्थलचरतिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा खेचर-तिर्यञ्चयोनिक-पंचेन्द्रियऔदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[६२ उ.] गौतम ! वह जलचर, स्थलचर और खेचर, तीनों प्रकार के तिर्यञ्चपंचेन्द्रिय-औदारिकशरीरकायप्रयोग से परिणत होता है, अतः खेचरों तक पूर्ववत् प्रत्येक के चार-चार भेदों (सम्मूर्छिम, गर्भज, पर्याप्तक और अपर्याप्तक के औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत) के विषय में कहना चाहिए।
६३. जदि मणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए किं सम्मुच्छिममणुस्सपंचिंदिय जाव परिणए ? गब्भवक्कंतियमणुस्स जाव परिणए ?
गोयमा ! दोसु वि।
[६३ प्र.] भगवन् ! यदि एक द्रव्य मनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है तो क्या वह सम्मूर्च्छिममनुष्य-पंचेन्द्रिय-औदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है, अथवा गर्भजमनुष्य-पंचेन्द्रियऔदारिकशरीर-कायप्रयोगपरिणत होता है ?
[६३ उ.] गौतम ! वह दोनों प्रकार के (सम्मूर्छिम अथवा गर्भज) मनुष्यों के औदारिक शरीरकायप्रयोग से परिणत होता है।
६४. जदि गब्भवक्कंतियमणुस्स जाव परिणए किं पजत्तगब्भवक्कंतिय जाव परिणए ?